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उत्तराखंड पर्यटन

पंचप्रयाग ही नहीं पंचकेदार भी हैं उत्तराखंड की शान जानिये क्या है इनका इतिहास

Last updated: June 5, 2020 1:36 pm
Debanand pant
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5 Min Read
panchkedar
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उत्तराखंड को यूँ ही देवभूमि नहीं कहा जाता है पंचबद्री, पंचकेदार, पंचप्रयाग, यखी छीन पंच पंडों भी ऐन यखी भाग हमरा धन धन धरती हमरा गढ़वाल की कित्गा रौन्तेली स्वानी च. नरेद्रसिंह नेगी जी के इस गीत में उत्तराखंड के इतिहास में पांच शब्द का बहतरीन ढंग से इस्तेमाल किया गया है हम सभी जानते हैं की पंचकेदार भगवान् शिव के रूप माने जाते हैं इन पांचों धामों की यात्रा बेहद की कठिन मानी जाती है कहते हैं की भगवान् शिव अपने भक्तों की कड़ी परीक्षा लेते हैं यदि आप पांच केदार की यात्रा करते हैं तो भगवान् शिव खुश होकर अपने भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं. आइये इस कड़ी में हम अपको पांच केदार के बारे में बताते हैं-

केदारनाथ धाम-समुद्र तल से करीब साढ़े 12 हजार फीट की ऊंचाई पर केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम का सर्वोच्य स्थान है। साथ ही यह पंच केदार में से एक है। केदारनाथ धाम में भगवान शिव के पृष्ट भाग के दर्शन होते हैं। त्रिकोणात्मक स्वरूप में यहां पर भगवान का विग्रह है। केदार का अर्थ दलदल है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली के मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया था। जबकि आदि शंकराचार्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर की विशेषता यह है कि 2013 की भीषण आपदा में भी मंदिर को आंच तक नहीं पहुंची थी। मंदिर के कपाट अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलते हैं।

मद्महेश्वर मंदिर-रुद्रप्रयाग जिले में ही मद्महेश्वर मंदिर बारह हजार फीट की ऊंचाई पर चौखंभा शिखर की तलहटी में स्थित है। मद्महेश्वर द्वितीय केदार है, यहां भगवान शंकर के मध्य भाग के दर्शन होते है। दक्षिण भारत के शेव पुजारी केदारनाथ की तरह यहां भी पूजा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मान्यता है कि यहां का जल पवित्र है। इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। शीतकाल में छह माह यहां पर भी कपाट बंद होते हैं। कपाट खुलने पर यहां पूजा अर्चना होती है।

तुंगनाथ मंदिर-तुंगनाथ भारत का सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। तृतीय केदार के रूप में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां भगवान शिव के भूजा रूप में आराधना होती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बहुत रमणीक स्थल पर निर्मित है। इस मंदिर को 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण यहां के पुजारी होते हैं। शीतकाल में यहां भी छह माह कपाट बंद होते हैं। शीतकाल के दौरान मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है। तुंगनाथ के कपाट खुलने पर देशभर के शिव भक्त यहां पूजा करने पहुंचते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर- चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ विख्यात हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है। बुग्यालों के बीच गुफा में भगवान शिव के मुखर विंद अर्थात चेहरे के दर्शन में होते हैं। भारत में यह अकेला स्थान है, जहां भगवान शिव के चेहरे की पूजा होती है। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम घाटी के दमुक गांव से गुजरता है, लेकिन दुर्गम होने के कारण श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए श्रद्धालु गोपेश्वर के निकट सगर गांव से यात्रा शुरू करते हैं। शीतकाल में रुद्रनाथ मंदिर के भी कपाट बंद रहते हैं। इस दौरान गोपेश्वर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा की जाती है।

कल्पेश्वर मंदिर-पंचम केदार के रूप में कल्पेश्वर मंदिर विख्यात हैं। यहां भगवान की जटा के दर्शन होते हैं, यह मंदिर बारहों महीने खुला रहता है। कहते हैं कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान ‘कल्पेश्वर या ‘कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए 10 किमी पैदल चलना होता है। यहां श्रद्धालु भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान तक पहुचते हैं। गर्भगृह का रास्ता एक गुफा से होकर जाता है। कल्पेश्वर मंदिर के कपाट सालभर खुले रहते हैं। ')}

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