देवभूमि में अनेकों चमत्कार और दैवीय शक्तियां निवास करती हैं हम आज आपको ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां देवताओं के साथ दानव की भी पूजा की जाती है। उत्तराखंड के पौड़ी में स्थित थलीसैण ब्लॉक के एक गांव पैठाणी का धार्मिक महत्व संभवतया देश के और धार्मिक स्थानों से थोड़ा भिन्न है।
पूरे भारत वर्ष में यहां राहू का एकमात्र प्राचीनतम मंदिर स्थापित है। यह मंदिर पूर्वी और पश्चिमी नयार नदियों के संगम पर स्थापित है। उत्तराखंड के कोटद्वार से लगभग 150 किलोमीटर दूर थलीसैण ब्लॉक के पैठाणी गांव पढ़ता है इसी गांव में राहू का मंदिर भी है।
आपको पता होगा कि राहू एक दानव था जब समुद्र मंथन के दौरान राहू ने देवताओं का रूप धरकर छल से अमृतपान किया था तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया, ताकि वह अमर न हो जाए। कहते हैं, राहू का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था।
एक और धारणा के अनुसार मान्यता है कि आदिकाल में राहु ने अपने कष्टों से मुक्ति के लिए स्वयं इस स्थान पर शिव लिंग स्थापित कर शिव भगवान की तपस्या की थी।
फलस्वरुप भगवान भोले प्रसन्न हुए थे। माना जाता है कि आज भी राहु इस मंदिर में भगवान शिव का तप कर रहे हैं। अगर आप भी राहु-केतु या शनि दोष से पीड़ित हैं तो पैठाणी स्तिथ राहु ईश्वर मंदिर में आकर अपना दोष दूर कर सकते हैं।
धार्मिक आस्था के अनुसार राहु द्वारा स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक कर लिंग की पूजा करने से राहु प्रसन्न हो जाते है। राहु की खूबी है कि अगर उनकी सकारात्मक दृष्टि किसी पर बन जाये तो वो फर्श से अर्श तक पहुंच सकता है।
मंदिर में भगवान् शिव की प्रतिमा के साथ ही राहू की प्रतिमा भी स्थापित की गयी है इस तरह से लोग भगवान् शिव के साथ राहू की भी पूजा करते हैं। आज यह राहू मंदिर विश्व विख्यात है। धड़ विहीन की राहू की मूर्ति वाला यह मंदिर देखने से ही काफी प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी प्राचीन शिल्पकला अनोखी और आकर्षक है। ')}