ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में एनआरआई इंस्टिट्यूट ने परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती को प्राइड ऑफ़ इंडिया-2017 से सम्मानित किया । उन्हें यह सम्मान उनके स्वामी द्वारा किये गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए दिया गया।
स्वामी चिदानंद सरस्वती का जीवन का एक ही उद्देश्य है “मानवता और ईश्वर की सेवा”। मानवता और ईश्वर की सेवा करने के लिए बहुत ही कम उम्र में स्वामी जी अपना घर त्याग दिया था। हिमालय पर अपनी युवावस्था बिताने वाले स्वामी चिदानंद सरस्वती ने हिमालय पर जाकर मौन, ध्यान और तपस्या की। नौ वर्ष के अखंडित साधना और मौन के बाद 17 वर्ष की आयु में ये वापस आए और अपने गुरु के कहने पर उन्हीं के समान अकादमिक शिक्षा प्राप्त की।
सन् 1986 स्वामी चिदानन्द सरस्वती इसके अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक मुखिया हैं। स्वामी चिदानंद भारतीय संस्कृति शोध प्रतिष्ठान, ऋषिकेश तथा पिट्सबर्ग (Pittsburgh) के हिन्दू-जैन मन्दिर के भी संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं। उनकी प्रेरणा से सन् 2012 में हिन्दू धर्म का विश्वकोश निर्मित हुआ। विश्व शान्ति के अग्रिम कार्यों के लिए स्वामी को कई सम्मान मिल चुके हैं।
स्वामी योग और साधना को परमसत्य मानते हैं वो कहते हैं की योग से आप खुद को महसूस करते हो। योग जीवन को सकारत्मक उर्जा की और ले जाता है। स्वामी जी का सबसे बड़ा अभियान स्वच्छता के के प्रति है। स्वामी हमेशा ही मां गंगा की स्वछता से लेकर हर घर स्वचालय की मुहिम से जुड़े रहते हैं।
उनके द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण को सुधारने जैसे कार्यों में उलेखनीय योगदान के लिए आज के समय का एक महान संत कहा जाता है। यही कारण है कि स्वामी जी को देश ले लेकर विदेश तक गुरु के रूप पूजा जाता है। मानवता का पाठ पढ़ाने वाले स्वामी चिदानंद निर्भीक स्वाभाव के संत हैं। एक संत जो समाज के विकास के लिए हमेशा कार्यरत रहता है।
चिदानन्द सरस्वती के अनुसार ’21वी सदी भारत की सदी है, हम न केवल अपने लिए, बल्कि अपनों के लिए सोचते हैं। सबकी बात, सबका साथ, सब के विकास की बात करते हैं। पूरा विश्व हमारा परिवार है। वसुधैव कुटमबकम इसी भावना का द्योतक है।’ ')}