Raibaar UttarakhandRaibaar UttarakhandRaibaar Uttarakhand
  • Home
  • Uttarakhand News
  • Cricket Uttarakhand
  • Health News
  • Jobs
  • Home
  • Uttarakhand News
  • उत्तराखंड पर्यटन
  • उत्तराखंड मौसम
  • चारधाम यात्रा
  • Cricket Uttarakhand
  • राष्ट्रीय समाचार
  • हिलीवुड समाचार
  • Health News
Reading: वीर चन्द्र सिहं भण्डारी (गढ़वाली) ने किया था अंग्रेजों के खिलाफ पहला सैनिक विद्रोह
Share
Font ResizerAa
Font ResizerAa
Raibaar UttarakhandRaibaar Uttarakhand
  • Home
  • Uttarakhand News
  • उत्तराखंड पर्यटन
  • चारधाम यात्रा
Search
  • Home
  • Uttarakhand News
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधम सिंह नगर
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • उत्तराखंड पर्यटन
  • उत्तराखंड मौसम
  • चारधाम यात्रा
  • Cricket Uttarakhand
  • राष्ट्रीय समाचार
  • हिलीवुड समाचार
  • Health News
Follow US
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Donate
©2017 Raibaar Uttarakhand News Network. All Rights Reserved.
Raibaar Uttarakhand > Home Default > उत्तराखंड संस्कृति > उत्तराखंड इतिहास > वीर चन्द्र सिहं भण्डारी (गढ़वाली) ने किया था अंग्रेजों के खिलाफ पहला सैनिक विद्रोह
उत्तराखंड इतिहास

वीर चन्द्र सिहं भण्डारी (गढ़वाली) ने किया था अंग्रेजों के खिलाफ पहला सैनिक विद्रोह

Last updated: June 5, 2020 1:34 pm
Debanand pant
Share
4 Min Read
veer chandra singh garhwali
SHARE

जन्म स्थान:-

चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसम्बर 1891 में हुआ था। चन्द्रसिंह के पूर्वज चौहान वंश के थे जो मुरादाबाद में रहते थे पर काफी समय पहले ही वह गढ़वाल की राजधानी चांदपुरगढ़ में आकर बस गये थे और यहाँ के थोकदारों की सेवा करने लगे थे। चन्द्र सिंह के पिता का नाम जलौथ सिंह भंडारी था। और वह एक अनपढ़ किसान थे। इसी कारण चन्द्र सिंह को भी वो शिक्षित नहीं कर सके पर चन्द्र सिंह ने अपनी मेहनत से ही पढ़ना लिखना सीख लिया था।

सेना मे भर्ती:-

3 सितम्बर 1914 को चन्द्र सिंह सेना में भर्ती होने के लिये लैंसडौन पहुंचे और सेना में भर्ती हो गये। यह प्रथम विश्वयुद्ध का समय था। 1 अगस्त 1915 में चन्द्रसिंह को अन्य गढ़वाली सैनिकों के साथ अंग्रेजों द्वारा फ्रांस भेज दिया गया। जहाँ से वे 1 फ़रवरी 1916 को वापस लैंसडौन आ गये। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ही 1917 में चन्द्रसिंह ने अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया के युद्ध में भाग लिया। जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई थी। 1918 में बगदाद की लड़ाई में भी हिस्सा लिया।

दिल में जागा देशप्रेम:-

कुछ समय पश्चात इन्हें इनकी बटैलियन समेत 1920 में बजीरिस्तान भेजा गया। जिसके बाद इनकी पुनः तरक्की हो गयी। वहाँ से वापस आने के बाद इनका ज्यादा समय आर्य समाज के कार्यकर्ताओं के साथ बीता। और इनके अंदर स्वदेश प्रेम का जज़्बा पैदा हो गया। पर अंग्रेजों को यह रास नहीं आया और उन्होंने इन्हें खैबर दर्रे के पास भेज दिया। इस समय तक चन्द्रसिंह मेजर हवलदार के पद को पा चुके थे।

अंग्रेजो का विद्रोह:-

पेशावर कांड के महानायक भारत मां के इस सच्चे सपूत ने जो मिशालें पेश की, वह इतिहास में हमेशा अमर रहेंगी. ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ पहले खुले सैनिक विद्रोह करने वाले वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में जंगे आजादी की लडाई लड़ रहे निहत्थों पठानों पर जब ब्रिटिश हुकुमत के गोली चलाने के आदेश को मानने से इंकार कर दिया तो उन्हें इसकी सजा काला पानी के रूप में चुकानी पड़ी.

श्री चन्द्रसिंह ”गढ़वाली” की हम गढ़वाली यथोचित कदर नहीं करते । वह एक बड़ा महान् पुरुष है । आजाद हिन्द फौज का बीज बोने वाला वही है । पेशावर-कांड का नतीजा यह हुआ, कि अंग्रेज समझ गये, कि भारतीय सेना में यह विचार गढ़वाली सिपाहियों ने ‘ही पहले पहल पैदा किया, कि विदेशियों के लिये अपने खिलाफ नहीं लड़ना चाहिये।

अन्तिम दर्शन:-

1 अक्टूबर 1979 को भारत मां का लाल हमेशा के लिए इस दुनिया को विदा कह गया, लेकिन जो आदर्श और मिशाल वह पेश कर गए वह आज भी हमारे बीच जिंदा है.

यह भी पढ़े- सैना के गढ़ लैंसडाउन का इतिहास नही जाना तो फिर क्या जाना? अंग्रेजो ने बसाया था लैंसडाउन

  ')}

देवलगढ़: गढ़वाल साम्राज्य का एक खोया हुआ रत्न
श्रीनगर गढ़वाल: 286 वर्ष पुरानी राजधानी, अब उत्तराखंड के प्रमुख शहरों में एक
जानिऐं बांज उत्तराखंड का सबसे उपयोगी पौधा क्यों है ? जानिऐ कैसे लगाऐं बांज का पेड़
उत्तराखंड में वो गांव जहां देवी सीता ने गुजारे थे अपने आखिरी दिन जानिए
उत्तराखंड में इस जगह से जाता है स्वर्ग के लिए रास्ता, जानिए कैसे युधिष्ठिर यहां पहुंचे स्वर्ग
Share This Article
Facebook Whatsapp Whatsapp Copy Link
Previous Article उत्तराखंड का लाल धर्मेन्द्र कुमार आंतकी मुठभेड़ मे शहीद गांव मे मातम
Next Article 52 garhs of garhwal गढ़वाल के 52 गढ़ो का इतिहास जानिऐ
Leave a Comment Leave a Comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Stay Connected

218kFollowersLike
100FollowersFollow
200FollowersFollow
600SubscribersSubscribe
4.4kFollowersFollow

Latest News

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भाजपा प्रदेश कार्यालय देहरादून में आयोजित दीपावली मिलन समारोह में हुए शामिल
Uttarakhand News
October 20, 2025
अब तक 26,000 से अधिक युवाओं को मिली सरकारी नौकरी — मुख्यमंत्री धामी बोले, पारदर्शिता हमारी पहचान
Uttarakhand News
October 18, 2025
दीपावली पर हाई अलर्ट मोड में स्वास्थ्य विभाग-मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर 24 घंटे सक्रिय रहेंगी सभी स्वास्थ्य सेवाएं
Uttarakhand News
October 17, 2025
दीपावली पर वाहनों में ओवरलोडिंग रोकने को परिवहन विभाग का विशेष चेकिंग अभियान
Uttarakhand News
October 17, 2025

खबरें आपके आस पास की

madho singh bhandari
उत्तराखंड इतिहास

माधो सिंह भंडारी के त्याग और स्वाभिमान को आज भी याद करता है मलेथा गॉंव

June 5, 2020
उत्तराखंड इतिहास

‘हे घांगु रमोला मैं जगह दियाला’ श्रीकृष्ण भगवान ने जब वीर भड़ घांगु रमोला से जगह मांगी

June 5, 2020
TEELU RAUTELI
उत्तराखंड इतिहास

विश्व की एकमात्र विरांगना जिसने 15 साल से 20 साल के बीच जीते 7 युद्ध, पढ़िये वीरगाथा..

June 5, 2020
उत्तराखंड इतिहासउत्तराखंड संस्कृति

उत्तराखंड के इतिहास से जुड़ी ये प्रेम कथा जब स्त्री ने किया पुरूष का हरण

June 5, 2020
Maa chandrabadni
उत्तराखंड इतिहास

यहां गिरा था मां सती का धड़, बिना दर्शन के ही हो जाती है सारी मनोकामनाएं पूरी

June 5, 2020
teelu rauteli
उत्तराखंड इतिहास

विश्व की एकमात्र विरांगना जिसने 15 साल से 20 साल के बीच जीते 7 युद्ध, पढ़िये वीरगाथा..

June 5, 2020
Raibaar UttarakhandRaibaar Uttarakhand
Follow US
©2017 Raibaar Uttarakhand News Network. All Rights Reserved.
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Donate