रुद्रप्रयाग: लॉकडाउन में बनी एक आत्मनिर्भर सड़क दो गांवों के बीच विवाद का बड़ा कारण बन गई। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, जखोली ब्लॉक के धरियांज गांव के युवको ने लॉकडाउन में अपने गांव के लिए सड़क बनाई थी। उस समय पडोसी गांव मुन्नादेवल से विवाद हो गया था। विरोध में मुन्नादेवल वालों ने सड़क पर पेड़ लगा दिए थे। यह मुद्दा सोशल मीडिया पर भी चर्चित रहा और लोगों ने मुन्नादेवल गांव के इस तरह के विरोध को पडोसी गांव होने के नाते और आज के दौर के हिसाब से गलत बताया था।
हालांकि धरियांज गांव के युवको ने इस सड़क को बिना किसी प्रशासन की मदद से बनाया, उनका कहना था कि सड़क का सर्वे पहले ही हो चूका था लेकिन वन विभाग और मुन्नादेवल गांव के विरोध के चलते इस सड़क पर ग्रहण लग गया। लॉकडाउन के समय ग्रामीणों ने खुद अपने गांव तक सड़क बनाने का फैसला किया। बिना किसी पेड़ काटे तीन किमी लम्बी सड़क भी बना डाली। अब यही सड़क बड़े विवाद की तरफ बढ़ रही है।
धरियांज गांव के निवासी विकास रौथाण ने बताया कि ‘सड़क के अभाव में उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अन्य गांवों से सड़क संपर्क स्थापित होने से हम काफी उत्साहित थे हमने इसलिए प्रशासन से मुखर होकर यह सड़क बनाई ताकि हमें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा के मौके मिल सकें। हमें लगा कि खुद सड़क बनाना अधिकारियों की ओर से दिखाई जा रही उदासीनता का माकूल जवाब साबित होगा लेकिन पडोसी गांव का इतना बड़ा विरोध हमें झेलना पड़ेगा हमें पता नहीं था’ सड़क बनने के बाद मामला थोड़ा शांत भी हुआ था, गांव तक गाड़ियां भी जाने लगी थी लेकिन एक बार फिर शनिवार को मुन्नादेवल गांव के लोगों ने मौके पर पहुंचकर सड़क पर एक बार फिर पौधरोपण का काम शुरू कर दिया, जिससे एक बार फिर विवाद की स्थिति बन गई है।
दरअसल, मुन्नादेवल गांव का कहना है कि यह जगंल हमारा है और हम अपने जंगल में कुछ भी कर सकते हैं। हमने अपनी मेहरबानी से तुम्हे रास्ता दे रखा है, फिर सड़क की जरूरत नहीं है हम अपने जंगल से सड़क जाने ही नहीं देंगे। अभी भी दोनों गाँवों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। एक तरफ धरियांज गांव के युवकों ने आत्मनिर्भर सड़क बनाकर अपने गांव को विकास की राह पर जोड़ने का काम किया तो वहीं, मुन्नादेवल गाँव के लोगों को यह मंजूर नहीं, दोनों गांवों के बीच जल-जंगल का एक समझौता भी इस विवाद का कारण बताया जा रहा है। धरियांज के निवासियों ने बताया कि साक्ष्यों के हिसाब से ये एक सार्वजनिक गौचारण भूमि है जिसको 1988 में दोनों गावो की सहमति से घोषित किया गया था बाद में हमारा-तुम्हारा जंगल की बात कहकर विवाद रहा लेकिन इस हमारे-तुम्हारे जंगल के बीच फंसी बैचारी आत्मनिर्भर सड़क अब प्रशासन से न्याय की गुहार लगा रही है।
कहने को तो सड़क गांव के विकास की बुनियाद बतायी जाती है लेकिन यह गांव अपनी इस बुनियादी सुविधा के लिए आज भी तरस रहा है। धरियांज गांव के ग्रामीणों ने बताया कि अब हम इस मामले में बड़ा आंदोलन करेंगे। हमने इस मामले में मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल पर भी अपनी शिकायत दर्ज करवाई है, स्थानीय प्रशासन तो हमारी मदद को तैयार नहीं है। पेड़ नहीं काटने के बाद भी वन विभाग ने जुर्माना तक लगा डाला, हमने वही भी भर दिया। हम सड़क के लिए 74 सालों से सरकार की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं हर आखिर कब तक हमें वो बुनियादी सुविधा मिलेगी जिसका ख्वाब हमारे दादा-परदादा ने देखा था और आज हम भी देख रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत हमने अपने गांव में सड़क बनाकर कर दी है हम चाहते हैं कि सरकार हमारी इस सड़क को मंजूरी देकर हमें प्रोत्साहित करे।