हरिद्वार, भीमगोड़ा पुल के नीचे बनी एक झुग्गी में सुरों की मल्लिका 17 वर्षीया आंखों से दिव्यांग नंदिनी अपनी विधवा मां के साथ रहती है। मां झुग्गी के बाहर गंगा जल वाले पीपे बेचती है।नंदिनी ने हरिद्वार के एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल से बारहवीं पास किया है। जब वह आठ वर्ष की थी तो उसने दिल्ली में पेंटिंग्स की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। पिता शिक्षक थे पर उनकी अचानक मौत के बाद ये लोग झुग्गी में रहने को मजबूर हो गये। नंदिनी बताती है उनके पिता के के दोस्तों ने उसकी स्कूल की फीस दी जिस कारण वह बारहवीं तक पढ़ पाई।
उसे बचपन से ही गाने का शौक था, पिता जागरण में गाते थे इसलिए घर में ही उसे गायन की तालीम मिली। स्कूल ने भी उनकी गायन प्रतिभा को आगे बढ़ाया जिस कारण वे गायन में सैकड़ों पुरस्कार जीत चुकी है।
चेहरे की मुस्कान उसकी परेशानियों को बाहर झांकने नहीं देती। कहती है, पैसे न होने के कारण गायन में टेलेंट के बड़े टीवी शोज में भाग नहीं ले
सकी, मौका मिलता तो अपनी प्रतिभा जरूर दिखाती। पर खैर कोई बात नहीं मैं मां गंगा की पूजा करती हूं और अपनी मेहनत भी। इसलिए उम्मीद है, मां गंगा किसी फरिश्ते को कभी न कभी जरुर भेजेगी, जो मेरी मदद करेगा।
नंदिनी सामने रखी कुर्सी का तबला बनाकर गाना शुरू करती है तो सड़क पर चलने वाले मुसाफिरों के पैर ठिठक जाते हैं और वे इस दिव्यांग गायिका की तारीफ करने लगते हैं।