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Raibaar Uttarakhand > Home Default > उत्तराखंड संस्कृति > उत्तराखंड इतिहास > गढ़वाल रायफल के इस सैनिक की बहदुरी को आज भी याद करती है ब्रिटिश सरकार!
उत्तराखंड इतिहास

गढ़वाल रायफल के इस सैनिक की बहदुरी को आज भी याद करती है ब्रिटिश सरकार!

Last updated: June 5, 2020 2:51 pm
Debanand pant
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2 Min Read
gabbar singh
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उत्तराखंड का एक नाम देवभूमि है तो दूसरा नाम शहीदों की भूमि भी है। बात की जाए टिहरी गढ़वाल की तो देश सेवा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने वालों की यहां कमी नहीं है उत्तराखंड राज्य से देश पर सबसे जादा जवान कुर्बान हुए हैं।

देश में ही नहीं विदेश में भी उत्तराखंड के वीर सपूत अपनी वीरता का लोहा मनवा चुकें हैं ऐसे ही ब्रिटिश की और से प्रथम विश्व युद्ध में उत्तराखंड के वीर सपूतों ने अपनी वीरता दिखाई थी इन्ही वीरों में एक नाम था गब्बर सिंह नेगी का।

गबर सिंह नेगी का जन्म 21 अप्रैल 1895 को उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले के चंबा के पास मज्यूड़ गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था। इसी जज्बे से उन्होंने अक्टूबर 1913 में गढ़वाल रायफल में भर्ती हो गये।

भर्ती होने के कुछ ही समय बाद गढ़वाल रायफल के सेनिकों को प्रथम विश्व युद्ध के लिए फ्रांस भेज दिया गया, जहां 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान न्यू शैपल में लड़ते-लड़ते 20 साल की अल्पायु में ही वो शहीद हो गए। गबर की सहादत के 102 साल पुरे हो चुके हैं।

मरणोपरांत गबर सिंह को ब्रिटिश सरकार के सबसे बड़े सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से उन्हें सम्मानित किया गया। सबसे कम उम्र में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले पहले सैनिक शहीद गबर सिंह नेगी थे।

उनके मरणोपरांत से 21 अप्रैल उनके जन्मदिवश के मौके पर हर साल चंबा में स्थित उनके स्मारक पर गढ़वाल राइफल द्वारा रेतलिंग परेड कर उन्हें सलामी दी जाती है। इसके अलावा गढ़वाल राइफल का नाम विश्वभर में रोशन करने वाले वीर गब्बर सिंह नेगी की कुर्बानी को याद करने के लिए हर वर्ष शहीद मेले के रूप में मनाया जाता हैं। ')}

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