वैसे तो काफल चैत और बैशाख के महीने में पकते हैं लेकिन इस बार उत्तराखंड के कौसानी टीआरसी स्थित काफल के दो पेड़ इन दिनों काफल से भरे हैं और पकने भी लगे हैं, कुदरत के इस करिश्मे पर वैज्ञानिक आश्चर्यचकित हैं। काफल से लदे ये पेड़ पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए कौतूहल का केंद्र बने हैं। वैज्ञानिक भी इसे अपनी-अपनी तरह से देख रहे हैं।
कोई इसे ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा कह रहा है, जबकि कोई जेनेटिक चेंज की बात कर रहा है। राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद के पूर्व महानिदेशक जीएस रौतेला का कहना है कि आश्चर्यजनक, जेनेटिक चेंज के कारण ऐसा हो सकता है। अंदरूनी व्यवस्था में बदलाव भी एक कारक हो सकता है। बौना पेड़, प्राय: ऑफ सीजन में भी फल दे देता है, लेकिन यहां ऐसा भी नहीं है।
वहीं जिला उद्यान अधिकारी, बागेश्वर तेजपाल सिंह का कहना है कि काफल फॉरेस्ट प्लांट है। अभी तो फल और पकने के लायक तापमान भी नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग इसका एक कारण हो सकता है। हर साल इन पेड़ों पर मार्च महीने में ही फल आते थे लेकिन इस साल नवम्बर के महीने में ही फल पकना शुरू हो गया है। ')}