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Raibaar Uttarakhand > Blog > उत्तराखंड संस्कृति > उत्तराखंड इतिहास > चम्पावत के अन्नपूर्णा शिखर पर है मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ ।
उत्तराखंड इतिहास

चम्पावत के अन्नपूर्णा शिखर पर है मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ ।

March 11, 2017
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purnagiri temple

ज़िला चम्पावत में अवस्थित पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर 4400 फुट की ऊँचाई पर है । कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था ।

प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं ।

सन् 1632 में कुमाऊं के राजा ज्ञान चंद के दरबार में गुजरात से पहुंचे श्रीचन्द्र तिवारी को इस देवी स्थल की महिमा स्वप्न में देखने पर उन्होंने यहा मूर्ति स्थापित कर इसे संस्थागत रूप दिया।

तभी से यहा पर पूजा अर्चना का कार्य तिवारी तथा उनके भांजों बल्हेडिया उर्फ पांडेय करते रहे हैं। कहा जाता है सच्चे मन से मा की उपासना करने पर मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं। टनकपुर से 22 किमी दूर शारदा नदी पर स्थित मां के दर्शनों को लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष आते हैं।

जिस चोटी पर सती का नाभि प्रदेश गिरा था उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते । कल कल करती सारदा नदी का द्रश्य अदभुत होता है।

sarda river
SARDA RIVER

मां पुर्णागिरी के दर्शन के लिऐ सबसे पहले टनकपुर पहुंचते हैं। टनकपुर के बाद ठुलीगाढ़ तक बस से तथा उसके बाद घासी की चढ़ाई चढ़ने के उपरान्त ही दर्शनार्थी यहाँ पहुँचते हैं । रास्ता अत्यन्त दुरुह और खतरनाक है । भैरव पहाड़ और रामबाड़ा जैसे रमणीक स्थलों से गुजरने के बाद पैदल यात्री अपने विश्राम स्थल टुन्नास पर पहुँचते हैं टुन्नास स्थान पर देवराज इन्द्र ने तपस्या की, ऐसी भी जनश्रुती है जहाँ भोजन पानी इत्यादि की व्यवस्थायों हैं । यहाँ के बाद बाँस की चढ़ाई प्रारम्भ होती है जो अब सीढियाँ बनने तथा लोहे के पाइप लगने से सुगम हो गयी है । मार्ग में पड़ने वाले सिद्ध बाबा मंदिर के दर्शन जरुरी हैं ।

रास्ते में चाय इत्यादि के खोमचे मेले के दिनों में लग जाते हैं । नागा साधु भी स्थान-स्थान पर डेरा जमाये मिलते हैं । झूठा मंदिर के नाम से ताँबे का एक विशाल मंदिर भी मार्ग में कोतूहल पैदा करता है ।

प्राचीन बह्मादेवी मंदिर, भीम द्वारा रोपित चीड़ वृक्ष, पांडव रसोई आदि भी नजदीक ही हैं । ठूलीगाड़ पूर्णागिरी यात्रा का पहला पड़ाव है ।

झूठे मंदिर से कुछ आगे चलकर काली देवी तथा महाकाल भैंरों वाला का प्राचीन स्थान है जिसकी स्थापना पूर्व कूर्मांचल नरेश राजा ज्ञानचंद के विद्वान दरबारी पंडित चंद्र त्रिपाठी ने की थी । मंदिर की पूजा का कार्य बिल्हागाँव के बल्हेडिया तथा तिहारी गाँव के त्रिपाठी सम्भालते हैं ।

वास्तव में पूर्णागिरी की यात्रा अपूर्व आस्था और रमणीक सौन्दर्य के कारण ही बार-बार श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी इस ओर आने को उत्साहित सा करती है । ')}

Debanand pant March 11, 2017
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