अगर अभी नहीं संभले तो फिर कब? उत्तराखंड का रामनगर शहर भविष्य के संकट में पढ़ सकता है। जिसका कारण एक शोध में ये बाताया जा रहा है कि यहां अनियोजित कॉलोनियों के बसने से पहाड़ से आने वाले बरसाती नालों और कोसी नदी के रास्तों को संकरा कर रहा है। ऐसे में भविष्य के लिए ये बात चिंताजनक साबित हो सकती है।
एक शोध के मुताबित शिवालिक की पहाड़ियों की तलहटी और कोसी नदी के किनारे बसे रामनगर को एक तरफ नहीं बल्कि दोनों तरफ से खतरा है। लन्दन में प्रकाशित एक शोध पत्रिका में जिसका नाम जियोमेट्रिक्स ऑफ नेचुरल हैजार्ड एंड रिस्क है।
उन्होंने अपने संस्करण 22 मार्च 2017 के अंक में भूगर्भशास्त्री कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रो. चारु पंत और पर्वत विकास के लिए एकीकृत अंतरराष्ट्रीय केंद्र (आईसीआईएमओडी) के अतिथि वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप रावत का शोध पत्र छपा है। शोध में पिछले 30 वर्षों के आंकड़ों के अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण रामनगर क्षेत्र में अतिवृष्टि, बाढ़ की घटनाएं प्रतिवर्ष चार प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं। शोध में ये भी बताया गया कि अनियोजित शहरीकरण के कारण करीब तीन प्रतिशत जनसंख्या प्रतिवर्ष बढ़ रही है।
रामनगर के भरतपुरी, पंपापुरी, दुर्गापुरी के क्षेत्र में कोसी के साथ-साथ कार्बेट क्षेत्र की तरफ से भी बरसाती नाले आते हैं। इस क्षेत्र में लगातार कॉलोनियां बस रही हैं। ऐसे में बादल फटने और नदी का जलस्तर बढ़ने से दोनों तरफ से लोग घिर जाएंगे तो बड़ी तबाही हो सकती है। ये क्षेत्र अतिसवेंदनशील माना गया है उसके अलावा भी नंदपुर, पीरूमदारा, बसई, करनपुर, टेड़ा, बैराज, तल्ला कानियां, मेन मार्केट, भवानीगंज, शिवलालपुर, शंकरपुर, बैड़ाझाल, नया गांव, भगुवाबंगर, चिल्किया, टांडा को भी काफी खतरा है।
खतरे जी जद से बचने के लिए अभी से कोई कदम नहीं उठाया गया तो परिणाम बढ़े खतरनाक साबित हो सकते हैं अत: इन सभी बाढ़ संवेदनशील क्षेत्रों में अनियोजित शहरीकरण का भू-वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नियोजन जरूरी है। जिसके चलते शहर को सुरक्षित बनाया जा सकता है। ')}