उत्तराखंड में में एक ऐसा मंदिर है जिसके शक्ति स्तंभ अंगुली से छूने से हिल जाता है, लेकिन जोर लगाने पर थोडा भी नहीं हिलता है। हो गए ना हैरान? जी हाँ ये सच है उत्तराखंड के उत्तरकाशी में भागीरथी नगरी के किनारे प्राचीन शक्ति मंदिर है। इस मंदिर के कपाट वर्ष भर खुले रहते हैं, लेकिन नवरात्र व दशहरे पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है
लोग यहां नोकामना पूर्ण करने के लिए नवरात्र व दशहरे में यहां श्रद्धालु रात्रि जागरण भी करते हैं गंगोत्री व यमुनोत्री आने वाले यात्रियों के लिए यह शक्ति स्तंभ आकर्षण व श्रद्धा का केंद्र होता है। आज तक इस शक्ति स्तंभ का ये पता नहीं चल पाया है कि यह किस धातु से बना हुआ है।
इस शक्ति स्तंभ के गर्भ गृह में गोलाकार कलश है। इस स्तंभ पर अंकित लिपि के अनुसार यह कलश 13वीं शताब्दी में राजा गणेश ने गंगोत्री के पास सुमेरू पर्वत पर तपस्या करने से पूर्व स्थापित किया। यह शक्ति स्तंभ 6 मीटर ऊंचा तथा 90 सेंटीमीटर परिधि वाला है।
यह शक्ति मंदिर उत्तरकाशी में विश्वनाथ मंदिर के समीप ही स्थापित है स्कंद पुराण के केदारखंड में इस शक्ति मंदिर का वर्णन मिलता है। पुरोणों में राजराजेश्वरी माता शक्ति के नाम से जानी गई है।
अनादि काल में देवासुर संग्राम हुआ। इसमें देवता व असुरों से हारने लगे तब सभी देवताओं ने मां दुर्गा की उपासना की। इसके फलस्वरूप दुर्गा ने शक्ति का रूप धारण किया तथा असुरों का वध किया। और यहां ये दिव्य शक्ति विराजमान हो गयी। प्रमुख पर्व के दौरान मां शक्ति के दर्शन मात्र से मानव का कल्याण होता है। वर्ष भर श्रद्धालु अपनी मन्नतों को लेकर मां के दरबार में आते हैं। ')}