उत्तराखंड में रहने वाले लोग अब अपने ही राज्य में उत्पादित चाय का आनंद ले सकेंगे। इसके पहले राज्य की सारी चाय या तो विदेशों में एक्सपोर्ट कर दी जाती थी। या फिर उसे कोलकाता की मशहूर चाय मंडियों में भेज दिया जाता था। जो कुछ कम गुणवत्ता की चाय बचती थी उसे लोकल मार्केट में बेचा जाता था।
लेकिन अब उत्तराखंड के लोग अपने यहां की प्रीमियम चाय की चुस्की ले सकेंगे। उत्तराखंड के चंपावत, घोड़ाखाल, गैरसैंण और कौसानी जैसी जगहों पर चाय की खेती होती है। इन चाय बागानों से हर साल लगभग 80 हजार किलो चाय का प्रोडक्शन होता है।
चाय उत्पादन के लिए हर लिहाज से उपयुक्त भूमि की उपलब्धता नौ हजार हेक्टेयर है, लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि महज 1141 हेक्टेयर में ही चाय उगती है। गुजरे 17 सालों में शेष 7859 हेक्टेयर भूमि को भी चाय बागानों के रूप में विकसित करने की दिशा में पहल होती, तो आज सात लाख किलो से अधिक चाय का उत्पादन मिलता, जो कि उत्तराखंड के कृषकों की दशा ही बदल देता।
लेकिन सरकार उदारता के चलते चाय को उत्पादन को उतने पंख नही लग पाए। 181 सालों के बाद जहाँ उत्तराखंड की चाय उत्तराखंड में भी बेचने की तैयारी चल रही है, वहीं चाय के उत्पादन को बड़ी मात्रा में अब प्रोत्साहन मिलता दिख रहा है। पिछले कुछ समय से उत्तराखंड में चाय को लेकर हलचल दिख रही है।
ख़बरों की माने तो सरकार चाय के उत्पादन को लेकर काफी गंभीर है। इस कड़ी में किसानों से लीज पर भूमि लेने अथवा दूसरे उपायों पर मंथन चल रहा है। उत्तराखंड चाय बोर्ड की कोशिश है कि उत्तराखंड की चाय को उसके स्वर्णिम दौर की ओर ले जाया जाए।
अतीत के आईने में झांकें तो 1835 में जब अंग्रेजों ने कोलकाता से चाय के 2000 पौधों की खेप उत्तराखंड भेजी तो उन्हें भी विश्वास नहीं रहा होगा कि धीरे-धीरे बड़े क्षेत्र में पसर जाएगी। वर्ष 1838 में पहली मर्तबा जब यहां उत्पादित चाय कोलकाता भेजी गई तो कोलकाता चैंबर्स आफ कॉमर्स ने इसे हर मानकों पर खरा पाया।
उत्तराखंड में चाय के उत्पादन की अपार असम्भानायें हैं, पलायन हो रहे लोगों की खेती पर चायपत्ती के पौधे रौपे जा रहे हैं अभी तक आठ जिलों अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, चंपावत, पिथौरागढ़, चमोली, रुद्रप्रयाग और पौड़ी में केवल 1141 हेक्टेयर क्षेत्र में ही सरकारी स्तर से चाय की खेती हो रही है।
टी बोर्ड के मुताबिक अंग्रेजों ने सबसे पहले चंपावत क्षेत्र में चाय की खेती शुरू की थी। आज हालाँकि उत्तराखंड में इतनी असीम संभावनाओं के बाद भी कार्य में तेजी नही लायी जा सकी थी लेकिन पिछले 2-3 सालों में चाय की खेती में तेजी आई है जिसके चलते संभावनाओं को नए पंख लग गए हैं। वो दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड चाय उत्त्पादन में अब्बल राज्यों के साथ खड़ा दिखेगा। ')}