देवभूमि उत्तराखंड को देवों की भूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है यहां हर जगह देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर हैं और ये सभी मंदिर अपनी अलग-अलग शक्तियों के लिए जाने जाते हैं। आज हम बात कर रहे हैं हजारों साल पुराने एक ऐसे मंदिर की जो अपनी दया दृष्टि और शक्तियों के लिए विख्यात है।
जी हां रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लॉक पट्टी बांगर में लस्तर नदी के तट पर भगवान वासुदेव का प्राचीन मंदिर स्थापित है। यह मंदिर 2 नदियों के संगम पर बना है। कहते हैं कि यहाँ नदी तट पर श्रीकृष्ण भगवान ने शिव की आराधना की थी। नदी तट के ठीक ऊपर मंदिर है, मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।
यह मंदिर अपनी दया दृष्टि और अद्भुत शक्तियों के लिए विख्यात है। बताया जाता है कि एक बार टिहरी के राजा भवानी शाह अपनी प्रजा की समस्याओं को लेकर बहुत चिंतित थे। टिहरी में काफी समय से बरसात नहीं होने की वजह से फसल बर्बाद हो रही थी। इस दौरान उन्होंने कई देवी-देवताओं का अनुष्टान कराया लेकिन बारिश नहीं हुई इसके बाद खिन होकर टिहरी के राजा ने अपने नगर में किसी भी देवी-देवता की डोली के आने जाने पे प्रतिबंध लगा दिया था।
उस समय भगवान वासुदेव की डोली गाँव-शहर का भ्रमण करती थी जब डोली टिहरी में पहुंची तो वहां डोली को अन्दर जाने की इजाजत नहीं मिली लेकिन लोग भगवान वासुदेव पर विश्वास करते थे। लोग डोली के सामने विनती कर बारिश की भीख मांगने लगे। देखते ही देखते आसमान में बादल गरजने लग गए और झमाझम बारीश होनी लगी।
अपनी आखों के सामने यह चमत्कार देखकर टिहरी के राजा भगवान वासुदेव के समक्ष नतमस्तक हो गए। इसके बाद जब भी भगवान वासुदेव के मंदिर में यज्ञ हवन होता था तो टिहरी के राजा पूरी हवन सामग्री भेजते थे और मंदिर को कई तरह के भेंट अर्पित करते थे। आज भी जब कभी लगता है कि सूखा पड़ गया तो लोग भगवान वासुदेव की शरण में आ जाते हैं। कहते हैं कि चमत्कार अपने आँखों से दिखता है घर लौटते लौटते मुसलाधार बारिश होनी लगती है।
पट्टी बांगर के इष्टदेव कहे जाने वाले भगवान वासुदेव अपने भक्त के सुमिरन मात्र से उसकी सहायता करते हैं। जो भगवान वासुदेव की शरण में आता है वो कभी खाली हाथ नहीं लौटता है। मंदिर में बारहों महीने हर दिन पूजा-पाठ किया जाता है ग्राम पूजारगाँव के भट्ट ब्राह्मण इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। श्रावण माह के पूरे महीने यहाँ जागर का आयोजन होता है और अंतिम संक्रांति के दिन पूरे बांगर पट्टी के लोग भगवान वासुदेव को दूध चढ़ाते हैं। इस दूध से बड़ी मात्रा में प्रसाद तैयार किया जाता है जिसे क्षेत्र के हर घर में भेजा जाता है। इस मंदिर में हर 12 साल में महायज्ञ यानी जगी का आयोजन भी होता है जिसमें दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग भगवान वासुदेव के दर्शन के लिये आते हैं।