पहाड़ों पर चीड़ का पेड़ जितना वरदान है उतना ही आजकल हानिकारक बना है वेसे तो चीड़ उत्तराखंड की संस्कृति का प्राचीन समय से एक हिस्सा रहा है, उत्तराखंड में 34 हजार हेक्टेयर भूमि पर चीड़ के वृक्ष हैं, गांव के आस पास तो इन जंगलों की सुखी हुई पिलटू यानी पाइन नीडल लोग इस्तेमाल में ला देते हैं। लेकिन कई जंगलों में यह अनावश्यक रूप से जंगल में पड़ी रहती और कभी ना कभी यह घास जंगल में आग लगने का कारण बन जाती है।
जहां चीड़ के पेड़ से सरकार और आमजन को कई फायदे होते हैं। वहीं इस पेड़ ने आज पहाड़ों पर गहरा संकट पैदा कर दिया है और वह संकट है जंगलों में आग लग जाना, जिसमे कई जानवर मर जाते हैं और पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ जाता है। लेकिन अब आग का मुख्य कारण बनने वाले इस पेड़ की पत्तियों से अब कपडे बनेंगे।
केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय ने चीड के रेसे से बना जैकेट तैयार किया है, जिसे खुद केन्द्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा तोहफे के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट करेंगे। अपने प्रयासों से केंद्र सरकार के रेशा विशेषज्ञों ने पाइन नीडल (पिलटू) से मजबूत रेशा तैयार किया है। उसके बाद उस रेशे से कपड़ा बनाने वाले फैब्रिक को विकसित किया गया। फैब्रिक के डेवलप होने के बाद अंतिम चरण में उसने कपड़े का रूप धारण किया।
आपको बता दें चीड़ से पैदा होने वाला लीसा सबसे पहले उत्तराखंड के जंगलों से ही निकाला गया था यह काम 1890 में शुरू हुआ। 1896 में इसका व्यावसायिक रूप से दोहन होने लगा था। आज के समय में चीड़ का सबसे जादा प्रयोग इमारती लकड़ी और लीसा के लिए सबसे जादा होता है, यदि सरकार इसकी पत्तियों पर और भी रिसर्च करे कुछ इंधन संबधी कार्यों में इसका इस्तेमाल करे तो हो सकता है कि आग लगने का कारण बनने वाली इन पतियों को ग्रामीण इक्कठा कर बेचें, इससे आम आदमी की आमदनी बढ़ाने के साथ जंगलों को आग से भी बचाया जा सकता है। ')}