उत्तराखंड के लोकसंगीत लोक गीतों के संरक्षण और संवर्धन में शिद्दत से कार्य करने वाली डा. माधुरी बड़थ्वाल को पद्मश्री से नवाजा जाएगा। केंद्र सरकार की ओर से उन्हें पदम सम्मान के लिए चुना गया है। पूरे उत्तराखंड के लिए यह गौरवान्वित करने वाली खबर है बता दें कि भारत सरकार ने पहले भी डा. माधुरी को नारी शक्ति पुरूस्कार से सम्मानित कर चुकी है लेकिन लोक संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री जैसे उत्कृष्ट सम्मान से नवाजे जाने के लिए चुना है बता दें कि डा. माधुरी बड़थ्वाल आल इंडिया रेडियो नबीबाजाद में पहली महिला संगीतकार रहीं। यहीं से उन्होंने लोक संगीत के संरक्षण को प्रयास शुरू किए। आज महिलाओं को गायन, वादन में प्रेरित करने के साथ ही प्रशिक्षण भी दे रहीं हैं।
माधुरी को महज ढाई साल की उम्र में ही लोक संगीत के प्रति गहरा लगाव हो गया था। मूल रूप से पौड़ी जिले के यमकेश्वर के चाय दमराड़ा निवासी डा. माधुरी बड़थ्वाल वर्तमान में देहरादून के बालावाला में रहती हैं। डॉ. माधुरी बड़थ्वाल विगत 5 दशकों से लोक गीतों के संरक्षण और संवर्धन में बड़ी शिद्दत से जुटी हुई हैं। उन्होंने पिछले 50 सालों में उत्तराखंड के गाँव-गाँव में घूमकर लोक जीवन के असली कलाकारों को पहचाना और सैकड़ों लोगों को लोक संगीत का प्रशिक्षण दिया। साथ ही, पारम्परिक वाद्य यंत्रों में पुरुषों के एकाधिकार को चुनौती दी और महिलाओं की मांगल व ढोल वादन टीम बना कर एक नई नज़ीर पेश की।
आकाशवाणी की पहली महिला म्यूज़िक कम्पोजर डॉ. माधुरी बड़थ्वाल ने पारम्परिक वर्जनाओं को तोड़ और कई बाधाओं को पार कर लोक गीतों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आकाशवाणी में 32 साल कार्य करने के उपरांत सेवानिवृत्त होने के बाद माधुरी बड़थ्वाल ने लोक संस्कृति और लोक गीतों को आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाने और इसके संरक्षण-संवर्धन के लिए महिलाओं की मांगल टीम बनाकर उन्हें ढोल वादन में पारंगत किया।