मंडुवे (वैज्ञानिक नाम इल्यूसीन कोराकाना) को कुछ साल पूर्व तक गरीबों का आहार कहा जाता था। लेकिन, आज इसी मंडुवे के लोग दीवाने हो रखे हैं। पहाड़ों से खत्म होती मंडुवे की खेती को बचाने के लिए सरकार हमेशा से ही प्रयासरत रही है।
मुंडवे को अब नयी पहचान मिल गयी है। और यहाँ काम कर दिखाया है गांव के ही दो युवाओं ने। जिन्होंने न केवल मंडुवे को बढ़ावा दिया बल्कि गांव की महिलाओं को भी रोजगार दिया है।
दरअसल कुछ समय पहले कुलदीप रावत और संदीप सकलानी ने अपने साथ 18 महिलाओं को जोड़कर मंडुवे की बर्फी बनानी शुरू करी। सबसे पहले इन्होंने 400 किलो की बर्फी बनाई और मार्केट में बिकने के लिए भेज दी। जिसके बाद देखते ही देखते बर्फी की डिमांड बढ़ने लगी और इस बार ये डिमांड 1 टन आयी है।
औषधीय गुणों से भरपूर इस जैविक बर्फी की कीमत 400 रुपये प्रति किलो है। आज स्थिति ये है कि अब हर दिन फोन पर मंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, देहरादून, ऋषिकेश उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग से डिमांड आ रही है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी यह बर्फी खाकर काफी खुश हुए और इन मंडुवे की बर्फी बनाने वाले कुलदीप और सन्दीप के माध्यम से किसानों को खेती के लिए उत्साहित भी किया।
कैसे बनती हैं-
मुंडवे के साथ मावा और कोकोनट मिलाया जाता है, शुद्ध देशी घी में इस बर्फी को ड्राई फ्रुट के साथ तैयार किया गया है। बर्फी में मिठास के लिए शक्कर मिलाई जाती है। यह पूरी तरह जैविक है। मंडुवा में वैसे भी कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं, उस पर ड्राई फ्रुट के कारण इसकी गुणवत्ता और बढ़ गई है। यह एकदम अलग तरह की मिठाई है, जो औषधीय गुणों से भी भरपूर है।
मिल रहा रोजगार-
इन दो युवाओं ने गांव-गांव जाकर किसानों को मंडुवा उगाने के लिए प्रोत्साहित किया है। साथ ही उनके मंडुवे को खरीदने का उन्हें आश्वासन भी दिया है। उन्होंने कहा है कि वे किसानों से अच्छे मूल्य पर खरीदेंगे। गांव की कई महिलाओं से इस कार्य से जुड़कर रोजगार प्राप्त कर रही हैं। इस कार्य के लिए मंडवे की मार्किट में भारी डिमांड आ गयी है।
ऐसे की शुरुहात-
26 वर्षीय संदीप सकलानी ने बीटेक करने के बाद दो साल अकाउंट इंजीनियर के रूप में राजस्थान में नौकरी की। लेकिन, वहां मन न रमने के कारण वह घर लौट आया और कुछ हटकर करने का निर्णय लिया।
इसी दौरान 25 वर्षीय कुलदीप रावत से उसकी दोस्ती हो गई, जो स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। दोनों के विचार मिले तो दो वर्ष पूर्व ‘देवकौश’ नाम से एक कंपनी का गठन किया।
इसके माध्यम से उन्होंने फलों व सब्जियों पर आधारित उत्पाद बनाने शुरू किए। इसी दौरान उन्हें पता चला कि केवीके रानीचौरी उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है तो उन्होंने भी इसमें भाग लिया और वहां मंडुवा की बर्फी बनानी सीखी।
आज पुरे देश से भरी आर्डर आने से दोनों युवा भारी उत्सुक हैं। उत्तराखंड से ही काफी जादा मात्रा में आर्डर आये हैं। देश के अन्य इलाकों से भी भारी डिमांड के बाद इस मिठाई को अब और भी जादा पहचान मिलनी वाली है। ')}