उत्तराखण्ड में बेडू, फेरू, खेमरी, आन्ध्र प्रदेश में मनमेजदी, गुजरात मे पिपरी, हिमाचल प्रदेश में फंगरा, खासरा, फागो आदि नामो से पहचान रखने वाला यह फल कई गुणों से भरपूर और बहुमूल्य औषधीय फल है।
यह उत्तराखण्ड के निम्न ऊँचाई से मध्यम ऊँचाई तक आज भी बड़ी मात्रा में मिल जाता है। यह एक Moraceae परिवार का पौधा है। अंग्रजी में इसे wild fig के नाम से भी जाना जाता है। कई जगह इसे सब्जी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उत्तराखंड में बेडू का कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं होता है लेकिन बहुत पहले गांव के लोग जंगल से बेडू लाकर खाते थे।
बेडू का उत्तराखंड की संस्कृति से कितना लगाव था इसका अंदाजा आप पौराणिक गीतों से भी लगा सकते हैं जिसमे एक गीत ‘बेडू पाको बारोमास’ आपने जरूर सुना होगा। गीत के माध्यम से बताया गया है कि बेडू बारामास पकने वाला फल था, यह इतना स्वादिष्ट फल है कि जो एक बार खा ले वह इसे हर बार खाना चाहेगा।
हालांकि आज के समय पर बेडू का महत्व समाप्त हो रहा है। कई जगह यह आसानी से मिल जाता है लेकिन कुछ लोग इसे खाने को तरस जाते हैं।
बता दें कि विश्व में बेडु की लगभग 800 प्रजातियां पाई जाती है। इसे गुणों की बात की जाय तो यह सम्पूर्ण पौधा ही उपयोग में लाया जाता है जिसमें छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा चोप औषधियों के गुणो से भरपूर होता है।
आयुर्वेद में बेडु के फल का गुदा (Pulp) कब्ज, फेफड़ो के विकार तथा मूत्राशय रोग विकार के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है। इसके प्रयोग से तंत्रिका तंत्र विकार तथा hepatic बिमारियों से निजात मिलती है, पारम्परिक रूप से बेडु को उदर रोग, हाइपोग्लेसीमिया, टयूमर, अल्सर, मधुमेह तथा फंगस सक्रंमण के निवारण के लिये प्रयोग किया जाता रहा है।
उत्तराखंड के गांवों में बेडु की पत्तियां पशुचारे के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, बताया जाता है कि जो पशु दूध कम देता है तो उसे बेडू की पत्तियां चारे में खिलाने पर पशु दूध अधिक देती है। उत्तराखंड में आज के समय में इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा सकता है जो विभिन्न खाद्य एवं फार्मास्यूटिकल उद्योग में उपयोग को देखते हुये स्वरोजगार के साथ-साथ बेहतर आर्थिकी का साधन बन सकता है।