कुंजापुरी शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। मन्दिर तक पहुंचने के लिये तीर्थनगरी ऋषिकेश से टिहरी राजमार्ग पर पहले लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिन्डोलाखाल नामक एक छोटे से पहाड़ी बाजार तक का सफर तय करना पड़ता है, जहां से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है यह मंदिर समुद्रतल से लगभग 1645 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
इस मन्दिर से आप कई महत्वपूर्ण चोटियों जैसे उत्तर दिशा में स्थित बंदरपूंछ (6320 मी), स्वर्गारोहिणी (6248 मी.), गंगोत्री (6672 मी.) और चौखम्भा (7138 मी.) को देख सकते हैं। यहां आने से ऐसा अनुभव होता है कि हम स्वर्ग से बहुत नजदीक हैं।
दक्षिण दिशा में यहां से घाटी में स्थित ऋषिकेश, हरिद्वार और आस पास के संपूर्ण क्षेत्र का भव्य एवं नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है। मन्दिर तक पहुंचने के लिये इस प्रवेश द्वार से 200 मीटर की चढ़ाई 308 सीढ़ियां चढ़कर पूरी करनी पड़ती है।
मन्दिर के मुख्य प्रवेशद्वार जो कि मन्दिर परिसर के समीप स्थित है, पर देवी मां के वाहन सिंह तथा हाथियों के मस्तक की दो-दो मूर्तियां बनी हुई हैं। मुख्य मन्दिर ईंट तथा सीमेन्ट का बना हुआ है जिसकी वास्तुकला शैली आधुनिक मन्दिरों की तरह ही है।
मन्दिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं हैं परन्तु अन्दर एक शिलारुप पिण्डी स्थापित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर देवी का वक्षभाग गिरा था। यह मन्दिर भक्तों की अटूट आस्था का केन्द्र है। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
मन्दिर में निरंतर अखन्ड ज्योति जलती रहती है। गढ़वाल के सभी मन्दिरों में समान्यतया पुजारी सदैव एक ब्राह्मण होता है, परन्तु इस मन्दिर में भण्डारी जाति के राजपूत लोग होते हैं जिनका पैतृक मूल ग्राम बड़कोट, पट्टी धवानस्यूं जिला टिहरी गढ़वाल के अन्तर्गत है। इन लोगों को मन्दिर में बहुगुणा जाति के ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा दी जाती है।
वर्ष 1972 से आश्विन नवरात्र के दौरान मन्दिर में कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेले का अयोजन किया जा रहा है। यह इस क्षेत्र के सबसे बड़े पर्यटक आकर्षण केन्द्रों में से एक है। इसमें आस-पास के क्षेत्रों से ही नहीं अपितु दूर दूर से दर्शक आकर इस पर्व के साक्षी बनते हैं।
यह मेला श्रद्धा, आद्यात्मिकता के साथ-साथ पर्यटन तथा विकास को भी बढ़ावा देता है। कुंजापुरी मंदिर के दर्शन आप साल भर कर सकते हैं हालाँकि बरसात के समय में यहाँ से दिखने वाले नज़ारे बादलों के कारण नहीं दिखाई देते। लेकिन उसके बाद यहां आना स्वर्ग आने के जैसी अनुभूति महसूस कराती है। ')}