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Raibaar Uttarakhand > Home Default > उत्तराखंड संस्कृति > उत्तराखंड इतिहास > 117वीं जयंती पर याद किये गए प्रकृति के सुकुमार कवी सुमित्रा नंदन पन्त
उत्तराखंड इतिहास

117वीं जयंती पर याद किये गए प्रकृति के सुकुमार कवी सुमित्रा नंदन पन्त

Last updated: June 5, 2020 1:36 pm
Debanand pant
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3 Min Read
sumitra nandan pant
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प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रा नंदन पंत को 117वीं जयंती पर याद किया गया। इस मौके पर शहर के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। 20 मई शनिवार को पंत पार्क में उनकी प्रतिमा पर पहुंचकर पालिकाध्यक्ष प्रकाश जोशी सहित अनेक गणमान्य लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर उन्हें याद किया गया। वक्ताओं ने कहा कि प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रा नंद पंत ने अपनी कवि के माध्यम से क्षेत्र का नाम रोशन किया। कविता के क्षेत्र में किए गए उनके सृजन को हमेशा याद रखा जाएगा। उत्तराखंड जैसी प्राकृतिक सुन्दर धरा जन्म लेने का उनके जीवन पर बड़ा गहरा असर पड़ा नदी, बर्फ, पुष्प, लता, भंवरा गुंजन, उषा किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था, गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, उंची नाजुक कवि का प्रतीक समा शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था

 

जीवन परिचय-

पंत जी का जन्म अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई 1900 ई. को हुआ। जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया। उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। उनका प्रारंभिक नाम गुसाई दत्त रखा गया। वे सात भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। 1918 में वे अपने मँझले भाई के साथ काशी आ गए और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहाँ से माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण कर वे इलाहाबाद चले गए। उन्हें अपना नाम पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने अपना नया नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया। यहाँ म्योर कॉलेज में उन्होंने बारवीं में प्रवेश लिया।

1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, न्यायालयों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के आह्वान पर उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बँगला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे।इलाहाबाद में वे कचहरी के पास प्रकृति सौंदर्य से सजे हुए एक सरकारी बंगले में रहते थे। उन्होंने इलाहाबाद आकाशवाणी के शुरुआती दिनों में सलाहकार के रूप में भी कार्य किया। उन्हें मधुमेह हो गया था। उनकी मृत्यु 28 दिसम्बर 1977 को हुई। ')}

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