उच्च हिमालयी क्षेत्र मैं तिमला का वृक्ष बहुतायत मात्र मैं पाया जाता है. उत्तराखंड मैं तिमले की पैदावार बहुत जादा मात्रा मैं होती है पक्षियों द्वारा इसके फल को दूर दूर ले जाने के कारण यह जंगलो में खुद ही पैदा होता है जबकि ग्रामीण इलाकों मैं लोग इसे अपने हाथों से लगते हैं इसका चारा पशुओं के लिए बहुत उपयोगी होता है इसका फल का कोई काम तो नहीं होता लकिन जब तिमला पक जाता है तो हम इन्हें बड़े चाव से खाते हैं यह फल अच्छी तरह पकने पर मीठा होता है .
तिमला (फिकस ऑरिकुलाटा) को अंग्रेजी मैं Cluster fig के नाम से जाना जाता है और हिंदी मैं इसे गुलार कहा जाता है हालाँकि गुलार तिमला की एक प्रजाति मानी जाती है तिमला ऊँचे और ठन्डे प्रदेशों मैं पाए जाते हैं भारत मैं तिमला का क्षेत्र उत्तर भारत माना जाता है यह उत्तराखंड, हिमांचल, अरुंनाचल प्रदेश, नेपाल और अन्य पहाड़ी क्षेत्र मैं बहुत जादा पाया जाता है
तिमला और उत्तराखंड –
तिमले का उत्तराखंड से बहुत ही प्राचीन काल से गहरा संबन्ध है यहाँ के लोकगीतों मैं तिमले का जिक्र किया जाता है बड़ा आकार की वजह से इसका पत्ता प्राचीन समय मैं खाना खाने के लिए थाली का काम करती थी आज भी कई जगह शादी पार्टी के आयोजनों मैं लोग इसके पत्तों का इस्तेमाल करते हैं बड़ी कड़ी पर बही सब्जियां और भात इसके पत्तों से ठाके जाते हैं साथ ही पशुओं का चारे के लिए यहाँ एक बड़ा विकल्प रहता है इसकी पतियाँ पशुओं के लिए फायदेमंद बताई जाती हैं .
इसके फल को लोग खूब खाते हैं इसलिए लोग इस पेड़ की उपयोगिता को देख घर के नजदीक ही लगते हैं इस पेड़ पर भरी भरकम शाखाएं निकलती हैं जिनपे धान के बाद सुखी न्यार (पराल) इसकी मजबूत शाखाओं पर लगे जाती है जो काफी समय तक सुरक्षित रहती है
तिमला से होगा कैंसर का इलाज़ –
वन अनुसंधान संस्थान (FRI) की केमिस्ट्री डिवीजन के शोध में पता चला कि तिमला के तेल में चार ऐसे फैटी एसिड हैं, पहला वैसीसिनिक एसिड, जिनसे कैंसर समेत अन्य बीमारियों का इलाज संभव है ए(अल्पा) दूसरा लाइनोलेनिक एसिड से दिल का इलाज़ होता है तीसरा लाइनोलेनिक एसिड जो की धमनियों मैं ब्लोकेज होने से रोकता है और चौथा ऑलिक एसिड जो कि लो-डेंसिटी लाइपोप्रोटीन की मात्रा शरीर में कम करता है
प्रस्तुतीकरण दून में चल रहे 19वें राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन में किया गया। अब तक यह पता नहीं था कि इस फल में कौन-कौन से तत्व मौजूद हैं लकिन अब इस फल की मांग दवाई कंपनियों द्वारा जादा की जाएगी और दवाई के दामों मैं भी कमी आएगी क्योंकि तिमला पहाड़ी इलाकों मैं आसानी से मिल जाता है वेसे तो उत्तराखंड मैं पारंपरिक रूप से इसका प्रयोग दवाओं के रूप मैं किया जाता रहा है लकिन इसपे कई सालों बाद कोई शोध किया गया है इसके बाद से इस पेड़ का महत्वा और भी जादा बड गया है . ')}