उत्तराखंड को देवो की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता है। यहां देवी देवताओं के वास्तविक स्वरुप होने के साक्षात प्रमाण मिलते हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित ‘त्रियुगी नारायण मंदिर’ यात्रा की एक पवित्र जगह है। यह मंदिर सड़क मार्ग से सोनप्रयाग से करीब 15 किमी की दूरी पर है। जबकि यहां से पैदल मार्ग से यह दूरी सिर्फ 7 किमी है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सतयुग में भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी स्थान पर विवाह किया था। रोचक तथ्य यह है कि जिस हवन कुण्ड की अग्नि को साक्षी मानकर विवाह हुआ था वह अभी भी प्रज्वलित है।
त्रियुगी नारायण मंदिर पूरे देश में काफी लोकप्रिय है। माता पार्वती का जन्म हरिद्वार के पास कनखल में राजा हिमालय के यहां हुआ था। पर्वत पुत्री होने के कारण ही उनका नाम पार्वती पढ़ा था जब पार्वती बड़ी हो गयी तो उनका विवाह शिवजी के साथ इसी जगह पर हुआ था।
आज हम ‘त्रियुगी नारायण मंदिर’के नाम से जानते हैं। उत्तराखंड की वादियों के बीच स्थित इस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसकी सौंदर्यता आंखों को सुकून देती है। इस विवाह में विष्णुजी को साक्षी बनाया गया था, इसलिए मंदिर में विष्णु की भी पूजा होती है। इस मंदिर के परिसर में ऐसे कई चीजें आज भी मौजूद हैं, जिनका संबंध शिव-पार्वती के विवाह से माना जाता हैं।
इस मंदिर की वास्तुशिल्प शैली भी केदारनाथ मंदिर की ही तरह है। इस जगह के भ्रमण के दौरान पर्यटक रुद्र कुण्ड, विष्णु कुण्ड और ब्रह्म कुण्ड भी देख सकते हैं। इन तीनों कुण्डों का मुख्य स्त्रोत ‘सरस्वती कुण्ड’ है। यहां बड़ी मात्रा में बर्ह्मा कमल भी खिलते हैं। ')}