भिलंगना के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में में मंगशीर की बड़ी दीपावली शनिवार को शुरू हुई। 19 नवंबर से तीन दिनी मेला भी इसके साथ शुरू हुआ। दीपावली मनाने के लिए बाहर रहने वाले लोग भी भी गांव पहुंचे थे। बूढ़ाकेदार की ऐतिहासिक मंगशीर की दीपावली पूरे जिले में प्रसिद्ध है। कार्तिक की दीपावली के ठीक एक माह बाद ग्रामीण मंगशीर की दीपावली मनाते हैं।
शनिवार को क्षेत्र में बड़ी दीपावली मनाई गयी। दीपावली में खूब भैले जलाए गये। शनिवार को गांव के बीच खेतों में ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से भैंला खेला और उसके बाद देर रात तक नृत्य भी किया।
दीपावली मनाने के बाद 19 को गुरु कैलापीर का विशाल मेला शुरू हुआ, सुबह को देवता की पूजा-अर्चना के बाद देवता के निशान को मंदिर से बाहर निकाला गया और फिर ग्रामीण देवता के साथ खेतों में दौड़ लगाने लगे।
मेले का शुभारंभ पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज जी ने किया इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। मेला समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र नेगी ने बताया कि इस बार दीपावली को खास अंदाज में मनाया गया। प्रथम दिन हजारों भक्तों ने कैलापीर देवता के निशान के साथ दौड़ लगाकर मन्नत मांगी।
दौड़ को देखने के लिए घरों, दुकानों की छत व आंगन खचाखच भरे थे। शनिवार को तड़के से ही देवताओं के दर्शनों के लिए श्रद्धालु उमड़ने लगे थे।
दोपहर एक बजे बूढ़ाकेदार सहित मेढ़, मरवाड़ी, निवालगांव, तितुरणा, कोटी के अलावा उत्तरकाशी जिले के नेल्डा व गाजणा कठूड़ के लोग ढोल व दमाऊं के साथ मंदिर परिसर पहुंचे। परंपरा के अनुसार लोगों ने सीटी बजाकर देवता को मंदिर से बाहर आने का आह्वान किया। पर्यटन मंत्री ने गुरु कैलापीर के धाम को विकसित करने और पर्यटन के रूप में इसे मुख्य धाम में सामिल करने की बात कही।
ठीक डेढ़ बजे गुरू कैलापीर को मंदिर से बाहर निकाल भक्तों ने दर्शन किए। इसके बाद देवता को लेकर ग्रामीण पुंडारा सेरा के खेतों में पहुंचे और देवता के साथ ही सात चक्कर दौड़ लगाई। अंतिम दौड़ में देवता को धान की सुखी पुआल चढ़ाई गई। इसे धान की अधिक पैदावार व क्षेत्र की खुशहाली के लिए शुभ माना जाता है। इस ऐतिहासिक क्षण को कई लोगों ने अपने कैमरों में कैद किया। मैले का आज आखिरी दिन है। ')}