कुमांऊ व गढ़वाल में कंडाली को काल्डी आला व सिसौण आदि कई नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे बिच्छू घास या बिच्छू बूटी कहते हैं बिच्छू घास नाम सुनकर आपके रौंगटे खड़े हो जायेंगे और सचमुच शरीर के किसी अंग को यदि कंडाली छू गयी तो अगले दो दिन तक उस जगह पर झनझनाहट रहेगी, लेकिन इसी कंडाली के घास का जब साग बनाया जाता है तो वो लज्जक और टेस्टी होता है।
गढ़वाल के अधिकांश घरों में आज भी कंडाली का साग खूब बनता है। लेकिन गांवों से पलायन होने के बाद ज्यादातर परिवार शहरों और छोटे कस्बों में बस गए हैं। शहरों में रह रहे लोगों को मुश्किल से ही गढ़वाली व्यंजन या कंडाली का साग खाने को मिलते होंगे। जबकि अधिकांश लोगों की हसरत होती है कि वो कंडाली का साग जैसा व्यंजन हर समय खाने को मिले, शहर में तो यह थोडा मुस्किल होता है। लेकिन कभी गांव जाना हुआ तो आप कंडाली को अपने साथ लाकर कुछ दिन इसका लुफ्त उठा सकते हैं।
आप इसे घरेलु अंदाज में बना सकते हैं लेकिन यदि आपको इसे बनाने की रेसिपी पता नहीं है, या आप इसे सही तरीके से नहीं बना सकते तो चिंता मत कीजिये हम आपको आज कंडाली की कापिली की रेसिपी और इसे खाने के फायदे बताने जा रहे हैं।
सबसे पहले क्या करें-
कंडाली की कापिली बनाने के लिए कंडाली की नई मुलायम कोपलें उपयुक्त होती हैं, लेकिन मुलायम कोपलें तभी होंगी जब कंडाली के पौधे को हर साल काटते रहेंगे, वरना पुराना पौधा खाने लायक नहीं होता, कोपलें काटकर लाने के लिए चिमटा जरूरी हथियार है। साथ में दो मुहँ वाली डंडी और तेज दरांती डंडी से कंडाली को दबायें और चिमटे से पकड़ें और फटा -फट दरांती से काटकर टोकरी में रखें।
सावधानी रखें कंडाली शरीर को न लगे इन हरी कोपलों को घर लाकर अच्छी तरह झाड़कर साफ़ कर लोहे की कढ़ाही में कम पानी में अच्छी तरह ढक्कन लगाकर पकाएं साथ में थोडा अमिल्डा की हरी पतियाँ भी पकाएं। अमिल्डा के पत्ते हल्के खट्टे होते हैं। सायद आपको पता होगा, यह स्वाद बढ़ाते हैं और संतुलन भी बनाते हैं। अब आप पकी हुई कंडाली को ठंडा करने के लिए रख दें।
अब साग बनाने के लिए जरूरी सामग्री भी साथ रख लीजिए लीजिये-
आप कंडाली का साग बनाने जा रहे हैं तो सबसे पहले आप इस सामग्री को अपने पास में रख दीजिये वो ये है – थोडा सा जख्या(तडके के लिए), लहसून चौप की हुई, हींग, लाल मिर्च कश्मीरी, बटर, हरी मिर्च कटी हुई, नमक स्वादानुसार और सरसों का तेल। इसके अलावा थोडा सा बेसन का घोल बना के रख दें या चांवल को पीसकर भी आप आलण बना सकते हैं। आलण का मतलब सभी पहाड़ी जरूर जानते होंगे। दरअसल बेसन या आटे के घोल को आलण कहा जाता है यह कंडाली के साग को और भी कलरफुल और टेस्टी बनाता है।
कापिली बनाने की विधि-
सबसे पहले उबली कंडाली को सिल-बट्टे से पीसें या करछी से अच्छी तरह घोटें। या थाली में अलग निकालकर उसमें पानी मिलाकर घोलें इस घोल में थोडा सा बेसन या चावल का आलण भी अच्छी तरह मिलायें यह आलण आप बाद में भी डाल सकते हैं। अब तडके के लिए कड़ाई में तेल डालें साबुत लाल मिर्ची उसमें भूलकर अलग निकाल लें अब उस तेल में लहसून, जख्या, चोरा या हिंग डालें, फटाफट कंडाली का घोल उसमें दाल दें, कंडाली की खुशबू से वातावरण मगक उठेगा अब करछी से अच्छी तरह हिलाते या घुमाते रहें ताकि कढ़ाही के तले पर न जमे।
कापिली में पानी अंदाज का ही रखें कापिली न ज्यादा पतली हो न ज्यादा गाढ़ी अच्छी तरह पकाएं थोड़ी देर में कापिली बनकर तैयार है। आपको बता दें कि आप इसमें कोई भी मसाला न डालें यदि आप ऐसा करते हैं तो इसके टेस्ट में पहाड़ी स्वाद खत्म हो जाता है। लेकिन यदि आपको अच्छा लगता है तो आप धनिया पाउडर और गर्म मसाले का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। परोसते समय मख्खन या घी उपर से डाल दें। इसके साथ लाल भुनी मिर्च का सेवन करना ना भूलें।
क्या है कंडाली के साग खाने के लाभ-
कंडाली में लौह तत्व अत्यधिक होता है खून की कमी पूरी करती है। इसके अलावा फोरमिक ऐसिड, एसटिल कोलाइट, विटामिन ए भी कंडाली में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें चंडी तत्व भी पाया जाता है गैस नाशक है आसानी से हज्म होती है कंडाली का खानपान पीलिया, पांडू, उदार रोग, खांसी, जुकाम, बलगम,गठिया रोग, चर्बी कम करने में सहायक है।
औद्योगिक रूप से यह Fiber के साथ-साथ/औद्याेगिक Chlorophyll का भी मुख्य स्रोत माना जाता है। चूंकि कंडाली एक बहुवर्शि पौधा है, और यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध से Fiber Plant के लिये औद्योगिक रूप से उगाया जाता है।
इसके अलावा स्त्री रोग, किडनी अनीमिया, साइटिका हाथ पाँव में मोच आने पर कंडाली रक्त संचारण का काम करती है कंडाली कैंसर रोधी है, इसके बीजों से कैंसर की दवाई भी बन रही है। एलर्जी खत्म करने में यह रामबाण औषधि है कंडाली की पतियों को सुखाकर हर्बल चाय तैयार होती है। कंडाली के डंठलों का इस्तेमाल नहाने के साबुन में होता है छाल के रेशे की टोपी मानसिक संतुलन के लिए उपयोगी है।
कंडाली को उबाल कर नमक मिर्च व मसाला मिलकर सूप के रूप में पी सकते हैं। कंडाली के मुलायम डंठल की बाहरी छाल निकालने के बाद डंठल से बच्चों व बड़ों के लिए एनिमा का काम लिया जा सकता है। अगर आपके शरीर के किसी हिस्से में मोच आ गई है, तो इसकी पत्तियों के इस्तेमाल से अर्क बनाकर प्रभाविक जगह पर लगा सकते हैं। इससे आपको जल्द ही आराम ।मिलेगा। इसके साथ ही अगर आपके शरीर में जकड़न महसूस हो रही है, तो इसका साग बनाकर खाएं।
अगर आप खाने पीने को लेकर भी बोर हो रहे हैं तो कंडाली का साग खाएं भूख लगनी शुरू हो जायेगी। कंडाली खाने के कई फायदे हैं और आज भी वैज्ञानिक इसपे रिसर्च कर रहे हैं। दोस्तों आपको कंडाली का साग कैसा लगता है कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। ')}