16 जून 2013 को शाम छह बजे धारी देवी की मूर्ति को अपनी जगह से हटाया गया और रात्रि आठ बजे अचानक आए सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था।
श्रीनगर गढ़वाल से मात्र 15 किलोमीटर दूरी पर प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसे ‘धारी देवी’ का सिद्धपीठ कहा जाता है। इसे दक्षिणी काली माता भी कहते हैं। मान्यता अनुसार उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती है बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर और रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर बीच स्थित कलियासोड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है, दिल्ली से 360 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता है।
समूचा हिमालय क्षेत्र मां दुर्गा और भगवान शंकर का मूल निवास स्थान माना गया है। इस स्थान पर मानव ने जब से अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू की है तब से जहां प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गई है 16 जून 2013 को शाम छह बजे धारी देवी की मूर्ति को अपनी जगह से हटाया गया और रात्रि आठ बजे अचानक आए सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था।
पहाड़ी बुजुर्गों के अनुसार विपदा का कारण मंदिर को तोड़कर मूर्ति को हटाया जाना है। ये प्रत्यक्ष देवी का प्रकोप है। देवी देवता अपने स्थान विस्थापन को लेकर क्रोधित हो जाते हैं लोगों में यह मान्यता है कि पहाड़ के देवी-देवता जल्द ही रुष्ट हो जाते हैं। कहते हैं कि मां के चमत्कार से आए दिन लोग परिचित होते रहते हैं वह शक्तिशाली है और लोगों को अपने होने का अहसास कराती रहती है। माता की मूर्ति दिन में 3 बार अपना रूप बदलती है।
कैसे हुई धारी माँ शक्तिपीठ की स्थापना-
मान्यताओं के अनुसार कालीमठ मंदिर में स्थापित मूर्ति का सर वाला हिस्सा बाढ़ के कारण बहाकर धारी नामक गॉव में नदी किनारे आकर रुक गया था स्थानीय लोगों ने इस अद्दभुत मूर्ति को पत्थर के ऊँचे चट्टान पर स्थापित कर दिया। बाद में इस मूर्ति को किसी ने हटाना चाहा लेकिन वो वहां से नहीं हटी और वहीँ पर स्थापित हो गयी धारी गाँव के नाम से ही नाम धारी देवी पड़ गया। माता अपने स्वारूप को दिन में 3 बार बदलती है। सुबह के समय कन्या रूप में दिन के समय जवान और साम को वृद्ध अवस्था में दिखाई देती है। माता अपने भक्तों का कष्ट कभी सहन नहीं करती है जादातर चार धाम जाने वाले यात्री माँ के दर्शन जरूर करते हैं। ')}