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उत्तराखंड पर्यटन

उत्तराखंड में यहां स्थित है मदमहेश्वर मंदिर, इस क्षेत्र में पिंडदान करने से होता है 100 पीढ़ी का कल्याण

August 13, 2017
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madmaheshwar

गढ़वाल के सुरम्य पर्वतांचल में स्थित मदमहेश्वर पंचकेदार में सर्वोपरी है। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ जाने वाली सड़क पर गुप्तकाशी से कुछ पहले कुण्ड नामक जगह आती है जहां से ऊखीमठ के लिए सड़क अलग होती है। ऊखीमठ में मुख्य बाजार से सीधा रास्ता उनियाना जाता है जो मदमहेश्वर यात्रा का आधार स्थल है।

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उनियाना से मदमहेश्वर की दूरी 23 किलोमीटर है जो पैदल नापी जाती है। यहां जितना सुकून आपको भगवान के दर्शन से मिलेगा उतना ही मनमोहक यहां का वातावरण भी है। दूर दूर तक फैली पहाड़ी चोटियां और प्राकृतिक नज़ारा देख आप एक बारगी अपने दुख और तकलीफों को भूल जाएंगे।

भगवान मदमहेश्वर की कथा-

किंवदंतियों के अनुसार, जब भगवान शिव खुद को पांडवों से छिपाना चाहते थे, तब बचने के लिए उन्होंने स्वयं को केदारनाथ में दफन कर लिया, बाद में उनका शरीर मदमहेश्वर में दिखाई पड़ा। एक मान्यता के मुताबिक मदमहेश्वर में शिव ने अपनी मधुचंद्ररात्रि मनाई थी।

कहा जाता है कि जो व्यक्ति भक्ति से या बिना भक्ति के ही मदमहेश्वर के माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है। यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए आपको गर्मियों में जाना होगा क्योंकि मदमहेश्वर मंदिर सर्दी के मौसम में बंद रहता है। इस क्षेत्र में पिण्ड दान शुभ माना जाता है। यदि कोई इस क्षेत्र में पिंडदान करता है वह पिता की सौ पीढ़ी पहले के और सौ पीढ़ी बाद के तथा सौ पीढ़ी माता के तथा सौ पीढ़ी श्वसुर के वंशजों को तरा देता है।

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शीतकाल में मंदिर के अंदर रखी रजत की मूर्तियों को उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाता है। वहीं ग्रीष्मकाल में पौराणिक विधि विधान के साथ मदमहेश्वर मंदिर खोला जाता है जहां देश-विदेश के शिव भक्त भगवान मदमहेश्वर के दर्शन कर विशेष पुण्य लाभ लेने हर वर्ष पहुंचते हैं।

पंचकेदार में केदारनाथ,मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और कल्पेश्वर शामिल हैं। इन पांच केदारों में शिव के अलग-अलग अंगों की पूजा की जाती है। केदारनाथ में शिव के पृष्ठ भाग की, तुंगनाथ में उनकी भुजाओं की, रुद्रनाथ में उनके मुख की, कल्पेश्वर में जटाओं की और मदमहेश्वर में उनकी नाभि की पूजा होती है।

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Debanand pant August 13, 2017
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