उत्तराखंड में पिछले एक दशक में 36.2 फीसदी की दर से 5,02707 लोग पलायन कर गए, पुरे देश में देखा जाये तो पलायन में उत्तराखंड का पहला स्थान रहा तो पडोसी राज्य हिमांचल प्रदेश भी उत्तराखंड से जादा पीछे नहीं है वहीं सिक्किम और कश्मीर से भी बड़ी मात्रा लोग पलायन कर रहे हैं।
उत्तराखंड में एक लाख 18 हजार 981 लोग स्थायी रूप से घरबार छोड़ चुके हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के बाद प्रदेश में 734 राजस्व गांव गैर आबाद हो गए हैं, जिन्हें अब ‘घोस्ट विलेज’ पुकारा जा रहा है। ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग के सर्वेक्षण की पहली अंतरिम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। शनिवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने सरकारी आवास पर रिपोर्ट का लोकार्पण किया। रिपोर्ट में पलायन की सबसे बड़ी वजह रोजगार के संसाधनों और आजीविका का अभाव है।
रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 850 ऐसे गांव पाए गए जिनमें पलायन करने वाले लोगों ने घरवापसी की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पलायन के प्रमुख कारणों का सरकार को पहले से ही इल्म था। सरकार समाधान की ओर बढ़ रही है। 2020 तक सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
3,83,726 लोगों का 6338 ग्राम पंचायतों से अस्थायी पलायन किया है, 1,18,981 लोगों का 3946 ग्राम पंचायतों से स्थायी पलायन किया है। 50 प्रतिशत लोगों ने आजीविका व रोजगार के अभाव में घरबार छोड़ा। 15 फीसदी ने बेहतर शिक्षा की सुविधा उपलब्ध होने से चले गए। 08 फीसदी ने चिकित्सा की सुविधा न होने से गांव छोड़ दिया । 70 फीसदी लोगो ने राज्य के भीतर ही किया पलायन 30 फीसदी लोगों का पलायन राज्य से बाहर एक फ़ीसदी लोग विदेशो में भी चले गए। पिछले 10 साल में 26 से 35 वर्ष आयु वर्ग के 42 फीसदी युवा घरबार छोड़ गए। 35 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में 29 फीसदी ने और 25 वर्ष से कम आयु वर्ग में 28 फीसदी ने पलायन किया। ')}