आजकल विदेशों मे भी जखिया की मांग बढ़ रही है । यह स्वास्थ्य के लिऐ बेहद लाभदायक है । उत्तराखंड के कई सेफ विदेशों मे भी जखिया के टेस्ट से लोगों को रूबरू करा रहें है वैसे तो जखिया भारत के कई शहरो मे आसानी से मिल जाता है लेकिन उत्तराखंडी खाने मे इसका महत्व बहुत जादा है।
जखिया जिसके बिना गढ़वाली खाने टेस्ट अधूरा है । जखिया का तड़का उत्तराखंड का राज्य तड़का भी कहें तो कोई हर्ज नही । जब हम गांव से बाहर कहीं बस जाते हैं तो गांव से जखिया लाना नहीं भुलते पहाडो मे पाया जाने वाला जखिया जिसके बीजों का प्रयोग गढ़वाल एवं कुमाऊं में किया जाता है
‘जखिया’ लेटिन में क्लियोम विस्कोसा के नाम से लोकप्रचलित इस वनस्पति को 500 से 1500 मीटर की ऊंचाई पर खाली बेकार पड़े पर्वतीय क्षेत्रों में आप देख सकते हैं।
इसके बीजों को जीरे के विकल्प के तौर पर भी प्रयोग में लाया जाता है।इसके बीजों का प्रयोग गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में हरप्रकार की कढ़ी,या आलू के गुटखे में स्वाद उत्पन्न करने के लिए डाला जाता है।
इसे डॉग मस्टर्ड भी कहते हैं।केदारघाटी के इलाकों में लोग जखिया के बीजों की खुशबू से निर्मित हरा साग बड़े चाव से खाते हैं।इसे “गढ़वाली जीरा” के नाम से जाना जाता है। लोग इसकी खुशबू एवं स्वाद के कारण जीरा या सरसों से अधिक पसंद करते हैं।
एक शोध पत्र के अनुसार इस वनस्पति का प्रयोग सूजन कम करने,लीवर संबंधी समस्याओं को दूर करने में,ब्रोंकाइटिस एवं डायरिया जैसी स्थितियों से निबटने में भी उपयोगी पाया गया है ।जखिया के बीजों से प्राप्त तेल भी औषधीय गुणों से युक्त होता है.
इसे इंफेन्टाइल कंवलजन एवं मानसिक विकारों की चिकित्सा में काफी उपयोगी माना गया है ।कई शोध अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि जखिया की पत्तियों में व्रण रोधी गुण पाये जाते हैं. ')}