9 जून 2018 सुबह पप्पू कार्की नैनीताल जनपद के गौनियारों में आयोजित युवा महोत्सव में अपने चार साथियों के साथ प्रस्तुति देकर हल्द्वानी लौट रहे थे। हैड़ाखान मंदिर के पास पहुंचते ही उनकी कार अनियंत्रित होकर गहरी खाई में जा गिरी उनकी तथा उनके दो साथियों की मौके पर ही मौत हो गई।
वो ऐसी खबर थी जिसने पुरे उत्तराखंड को झकजोर कर रख दिया था, किसी ने सोचा भी नहीं था कि अपनी संस्कृति की साख बचाने में जी जान लगा देने वाला महान कलाकार को हम इस तरह खो देंगे, अपने 34 साल की उम्र आज के दिन यानी 30 जून को पूरी करने वाले थे लेकिन पप्पू दा 21 दिन पहले ही इस अप्रिय घटना का शिकार हो गए।
बता दें कि पप्पू कार्की का जन्म 30 जून 1984 को पिथौरागढ़ जनपद के सेलावन ग्राम में किशन सिंह कार्की तथा कमला कार्की के घर हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय हीपा में, तथा आगे की शिक्षा जूनियर हाईस्कूल प्रेमनगर तथा राजकीय हाईस्कूल भट्टीगांव में प्राप्त की। परिवार की आर्थिक हालत खराब होने के कारण हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ वह दिल्ली में प्राइवेट नौकरी में लग गए।
2003 से 2006 तक दिल्ली में पहले एक पेट्रोल पंप में, फिर प्रिंटिंग प्रेस में, और अंत में एक बैंक में चपरासी की नौकरी करी, जिसके बाद वह रुद्रपुर आ गए, जहाँ दो साल उन्होंने डाबर कपंनी में काम किया। पप्पू कार्की की बचपन से ही संगीत में रुचि थी। पांच साल की उम्र से वह पारम्परिक न्योली लोकगीत गाने लगे थे।
इसके अतिरिक्त होली, रामलीला एवं स्कूल के राष्ट्रीय पर्वों में भी वह हमेशा भाग लेते थे। 1998 में पप्पू ने अपना पहला गीत अपने गुरु, कृष्ण सिंह कार्की की जुगलबंदी में रिकार्ड किया था। यह गीत उनकी एलबम ‘फौज की नौकरी में’ का था। इसके बाद 2002 में उन्होंने एक अन्य एलबम ‘हरियो रूमाला’ में भी गीत गाए। 2003 में पप्पू ने अपनी पहली एलबम ‘मेघा’ से खुद के गाए गीतों के एल्बमों की शृंखला शुरू की, लेकिन वे कुछ ख़ास सफल नहीं हुए।
इसके बाद वह दिल्ली चले गए, जहाँ 2006 में उन्होंने उत्तराखण्ड आइडल प्रतियोगिता में भाग लिया, और प्रथम रनरअप घोषित हुए थे। अपने रुद्रपुर निवास के दौरान कार्की ने लोक गायक प्रह्लाद मेहरा व चांदनी इंटरप्राइजेज के नरेंद्र टोलिया के साथ मिलकर ‘झम्म लागछी’ एलबम के लिए गाने रिकॉर्ड किए।
2010 में रमा कैसेट्स के बैनर तले रिलीज़ हुई यह एल्बम हिट रही, और इसके गीत “डीडीहाट की जमुना छोरी” ने उन्हें काफी पहचान दिलाई। 2015 में उनकी अगली एल्बम मोहनी रिलीज़ हुई थी। 2017 में उन्होंने “पीके इंटरप्राइजेज” नामक अपना पहला स्टूडियो हल्द्वानी के दमवाढूंगा में खोला था, जहां वह युवा गायकों को नए तौर तरीकों से गाने का प्रशिक्षण भी देते थे।
इसी वर्ष उनकी अगली एल्बम, साली मारछाली की शूटिंग का काम शुरू हुआ। 2018 फरवरी में उन्होंने “चेली बचाया, चेली पढ़ाया” का संदेश देता लोकगीत रचा, जिसे उत्तराखंड शासन द्वारा राष्ट्र व्यापी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान में शामिल किया गया। हालांकि अपनी एल्बमों या गीतों से अधिक वह अपने कुमाऊँनी लोकगीतों के लाइव कार्यक्रमों के लिए जाने जाते थे।
आज वो हमारे बीच नहीं लेकिन उनकी यादें हमेशा हमारे साथ नहीं रहेंगी। उनकी जन्म दिवश उनकी जयंती के रूप में हर साल मनाई जायेगी। उनकी कहानी हमारे युवायों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। हमारा यह भी प्रयास रहेगा कि जो चिंगारी संगीत के क्षेत्र में पप्पू दा ने जगाई है उसे आगे ले जायेंगे। नम आखों से दिवंगत आत्मा को श्रधांजली।
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