श्री नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखंड के सुर सम्राट ही नहीं बल्कि सबसे बड़े कवि और संगीतकार भी हैं उनके रोम-रोम में उत्तराखंड बसता है उनकी कलम का उत्तराखंड के रीति रिवाज, रहन सहन, धर्म संस्कृति, खेत खलियान, पेड़ पहाड़, हिंवाली कांठी, पानी पंदेरा, देवी देवता, राज रजवाड़ों से गहरा सरोकार था उनका प्रकृति प्रेम तो उनके गीतों में देखा जा सकता है वहीं उत्तराखंड के युवा को उन्होंने हमेशा अपने गानों से हमेशा जागृत किया चाहे वो उत्तराखंड बनाने की बात हो चाहे पेड़ पौधे बचाने की बात हो चाहे पलायन का मुद्दा हो उन्होंने गीत और संगीत के माध्यम से हमेशा ही उत्तराखंड के युवा को जागृत किया है आज हम उन्ही महान कलाकार के बारे में जानकारी इक्कठा कर आपके सामने पेश कर रहे हैं यदि आपके पास समय होगा तो उम्मीद है आप उनसे जुड़ी इन बातों को जरूर पढोगे
जीवन परिचय –
नेगी जी का जन्म 12 अगस्त 1949 को उत्तराखण्ड के पौड़ी जिले के पौड़ी गाँव में हुआ। इनकी माता स्वर्गीय समुद्रा देवी और पिता स्वर्गीय उमरावसिंह नेगी थे उमरावसिंह नेगी जी आजादी से पूर्व के नायब सुबेदार थे इनका परिवार बहुत बड़ा था नरेन्द्र सिंह नेगी जी अपने बहनों में इकलोते भाई थे बचपन पौड़ी में ही गुजरा और हिंदी फिल्मी गीतों के शौक के बावजूद अपने स्वभाव के चलते उन्होंने कभी स्कूल-कॉलेज के मंचों पर गाने नहीं गाये सन 1974 से लोकगीत गाने शुरू किये और 1978 में आकाशवाणी लखनाऊ और नजीबाबाद के लिए लोकगीत गाने शुरू किये
नेगी जी ने अपने म्यूजिक कॅरियर (जीवन-वृत की शुरुआत गढवाली गीतमाला से की थी और यह “गढवाली गीतमाला” १० अलग-अलग हिस्सों/पार्ट्स में थी। जैसे कि यह गढवाली गीतमाला अलग अलग कंपनियो से थी जिसके कारण नेगी जी को थोडी सी दिक्कतों का सामना करना पडा। तो उन्होंने अपनी कॅसेट्टस को अलग नाम से रिलीज करना शुरू किया। उन्होंने कई गढवाली फिल्मों में भी अपनी आवाज दी है जैसे कि “चक्रचाल”, “घरजवाई”, “मेरी गंगा होलि त मैमा आलि” आदि
उन्होंने अब तक तीन पुस्तक लिखी हैं “खुच कंडी “, “गाणियौं की गंगा, स्यणियौं का समोदर“, “मुठ बोटी की राख ” इन तीनो पुस्तकों को बहुत ही जादा प्रसिद्दी मिली .
इसके अलावा उनके चर्चित राजनीतिक गीत ‘नौछमी नारेणा’ पर 250 पृष्ठों की एक क़िताब ‘गाथा एक गीत की: द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणा’ (अंग्रेजी अनुवाद: Story of a song: The inside story of Nauchhami Narena) वर्ष 2014 में प्रकाशित हो चुकी है और काफी चर्चित रही है। इस पुस्तक के लेखक वरिष्ठ टेलीविज़न पत्रकार मनु पंवार हैं। यह पुस्तक श्रीगणेशा पब्लिकेशन दिल्ली ने प्रकाशित की है।
जीवन शैली-
नेगी जी केवल वास्तविकता में विश्वास रखते हैं। इसीलिए उनके सभी गाने वास्तविकता पर आधारित होते हैं और इसी कारण नेगी जी उत्तराखण्ड के लोगों के दिल के बहुत करीब है। गढवाली गायक होने के बावजूद नेगी जी को कुमाऊंनी लोग भी उन्हें बहुत पसंद करते हैं। हालाँकि कुमाऊंनी लोगो को गढवाली पूरी तरह से समझ नहीं आती है फिर भी सभी कुमाऊंनी लोग नेगी जी के गानों को बहुत पसंद करते हैं। नेगी जी “गुलजार साहब” के काम को बहुत पसंद करते हैं क्योंकि गुलजार की पुराने व नए रचनाओं में एक गहरा अर्थ होता है और वही अर्थ आप उनके लोकगीतों में भी पाएंगे
उनके गीतों में प्रकृति प्रेम साफ़ साफ़ झलकता है उन्होंने उत्तराखंड की प्राकृतिक सुन्दरता को अपने गीतों में फिरोकर बेहद मनोरंजक बनाया आज नरेन्द्र सिंह नेगी जी के उन गीतों का महत्वा और भी बाद गया है सायद ही हमे नरेन्द्र सिंह नेगी जैसे फनकार मिल सके अभी भी वो करीब 68 साल के हैं लेकिन उनकी आवाज में आज भी उतना ही दम है जितना पिछले पांच दशकों से रहा है आज भी वो जो लिखते हैं वो दिल में उतर जाता है नेगी जी के भावुक और मनोरंजक गीत आगे भी आपके सामने आते रहेंगे वो कहतें हैं जब तक जान है तब तक वो उत्तराखंड की भाषा एवम संस्कृति के लिए काम करते रहेंगे
उनकी कुछ सुपरहिट एलबम-
छुंयाल , दग्डया , घस्यारि, हल्दी हाथ , होसिया उम्र, जय धारी देवी, कैथे खोज्याणी होलि, बसंत ऐगे, माया को मुंडारू, नौछामी नरैणा, नयु नयु ब्यो च, रुमुक , सलण्या स्याली, समदोला क द्वी दिन, स्याणी, ठंडो रे ठंडो , तुमारी माया मा ,उठा जागा उत्तराखण्ड, खुद, ज्युनाली रात, टप्पकारा ,बर्खा , छिबडाट और भी बहुत साड़ी अल्बम हैं जिनका विस्तार में उलेख करना मुस्किल हो जाता है उन्होंने 1000 से जादा हिट गीतों को अपने आवाज़ दी है उत्तराखंड के गॉंव गॉंव में उनके गीत बड़े ही प्यार से बजाये जाते हैं उत्तराखंड रत्न से समानित गढ़ रत्न नेगी जी के गीतों की महक उत्तराखंड को हमेशा ही महकाती रहेगी उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाईयों का सामना भी किया होगा लेकिन उत्तराखंड संगीत को उन्होंने हमेशा आगे बढाया और उत्तराखंड को एक नयी पहचान दी. ')}