देहरादून : कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। इस बार करवा चौथ पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर 2021 को शाम 06:55 से लेकर 08:51 तक रहेगा। करवाचौथ के इस व्रत को करक चतुर्थी, दशरथ चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा चौथ के दिन भगवान शिव, गणेश जी और स्कन्द यानि कार्तिकेय के साथ बनी गौरी के चित्र की सभी उपचारों के साथ पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से जीवन में पति का साथ हमेशा बना रहता है, सौभाग्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 24 अक्टूबर तड़के 3 बजकर 2 मिनट से शुरू
चतुर्थी तिथि समाप्त: 25 अक्टूबर सुबह 5 बजकर 43 मिनट तक
पूजन के लिए शुभ मुहूर्त: 24 अक्टूबर 2021 को शाम 6 बजकर 55 से लेकर 8 बजकर 51 तक रहेगा।
करवा चौथ के दिन लगने वाले योग-
24 अक्टूबर को रात 11 बजकर 35 मिनट तक वरियान योग रहेगा। वरीयान योग मंगलदायक कार्यों में सफलता प्रदान करता है। इसके साथ ही देर रात 1 बजकर 2 मिनट तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा। माना जा रहा है कि ऐसा योग करीब 5 साल बाद बन रहा है।
कब निकलेगा चाँद-
करवा चौथ के दिन व्रत रखने वाली सुहागिन महिलाओं की नजर आसमान की ओर ही रहती है। उत्तराखंड में चाँद निकलने का समय रात करीब 8 बजे का है।
बाजारों में चमक-
उत्तराखंड के विभिन्न बाजारों में ख़ासकर देहरादून के बाजारों में कलश, चलनी, करवा चौथ कथा की पुस्तक, करवा के अलावा सुहागिनों के श्रृंगार के सामान सजे हुए हैं। महिलाएं करवा चौथ को लेकर बाजारों में खूब खरीदारी कर रही हैं जिससे बाजारों में खूब चहल-पहल दिखाई दे रही है।
यह है पूजा विधि-
घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ करके लकड़ी का पाटा बिछाकर उस पर शिवजी, मां गौरी और गणेश जी की प्रतिमा, तस्वीर या चित्र रखने चाहिए। बाजार में करवाचौथ की पूजा के लिए कैलेंडर भी मिलते हैं जिस पर सभी देवी-देवताओं के चित्र बने होते हैं। इस प्रकार देवी- देवताओं की स्थापना करके टेपा की उत्तर दिशा में एक जल से भरा लोटा या कलश स्थापित करना चाहिए और उसमें थोड़े-से चावल डालने चाहिए। एक मिटटी के करवे पर गेंहूं भरकर उसके ऊपर दिया जलाएं। अब उस पर रोली, चावल का टीका लगाना चाहिए और लोटे की गर्दन पर मौली बांधनी चाहिए। कुछ लोग कलश के आगे मिट्टी से बनी गौरी जी या सुपारी पर मौली लपेटकर भी रखते हैं। इस प्रकार कलश की स्थापना के बाद मां गौरी की पूजा करनी चाहिए और उन्हें सिंदूर चढ़ाना चाहिए, उसके बाद उनकी कथा पढ़नी चाहिए। हर जगह पूजा करने की अलग विधि हो सकती है लेकिन कुछ ये बातें हैं जो हर जगह एक जैसी ही रहती हैं। इसके बाद रात को चन्द्रोदय होने पर महिलाएं जल से चन्द्रमा को अर्घ्य देती हैं और घर में बना भोग लगाती है। पत्नियां अपने पति की लम्बी उम्र की दुआ करती हैं। पति की पूजा भी होती हैं चरण स्पर्श कर आशीर्वाद भी लिया जाता है। पत्नियां चलनी पर घी का दिया लगाकर पहले चाँद को निहारने के बाद पति को निहारती हैं। इसके बाद पत्नियां पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं।