पर्यावरण के लिहाज से बहुत ही फायदेमंद पत्ते की बनी थालियां हमारे पुर्वज ना जाने कितने सालों से इस्तेमाल करते हैं शायद आपको याद होगा बडी बडी पत्तियों वाले पेड़ से पत्तियां निकली जाती थी ओर उन्है वकायदा रिंगाल व बांस की बारिक छिलकियों से जोड़ा जाता था कई बार तो इन्हैं हाथ ओर मशीन से भी सीया जाता था इसे यदि हम फैंक देते हैं तो यह जल्द ही गलकर मिट्टि मे मिल जाती है जिससे ना तो प्रदूषण होता है ओर ना ही कचरा यह बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बडा देता है लेकिन आजकल इन पत्तों की पहचान खत्म हो चुकी है
हम लोग पलास्टिक की ओर भागते दिख रहे हैं गांव की ही बात करते हैं पहले जब शांदिया होती थी तो गांव के किसी भाग मे इन पत्तों को फैंकते थे तो 2-3 महिने मे ही ऐ पत्तियां गल कर नष्ट हो जाती थी ओर आजकल की शादियों मे हुआ प्लास्टिक कचरा ना सिर्फ कई साल तक आपको उस शादी की याद दिलाता रहेगा बल्कि गांव की दुषित पहचान को भी उजागर करेगा
हमारे पुर्वजों ने पर्यावरण को ध्यान मे रखकर इस व्यवस्था को चलाऐ रखा लेकिन आज का पड़ा लिखा समझदार बेटा प्लास्टिक से बने वस्तुओं का धडले से उपयोग कर रहा है ।
हम लोग भी पर्यावरण को दुषित करने मे कितना योगदान दे रहें हैं जहां हमारे पुर्वजों ने कपडे के थेला हमारे हाथ थमाकर दुकान से सामान खरीदना सिखाया था आज हम लोग वो थैला साथ ले जाना क्यों भूल जातें हैं ।
हमारे पुर्वजों की इस खोज को जर्मनी जैसे देश ने आधुनिक संसाधन के रूप मे विकसित करने का जिम्मा लिया है वहां पर इस पत्ते का धड्डले से युज होता है वो कहते हैं कि ये उनकी नई खोज है लेकिन उन्हे कोन बताऐ कि भाई ये पत्तल तो भारत की 50 साल पुरानी खोज है। ओर हमारे उत्तराखण्ड मे तो आज भी कई जगहों पर लोग इसका इस्तेमाल करते हैं।
हमारे लिऐ भी यह जरूरी हो गया है कि हम अपने पर्यावरण को बचाने के लिऐ इन पत्तों का वापिस से स्तेमाल करें इससे ना तो प्रदूषण होगा ओर ना ही गांव की चमक पर दाग लगेगा।
इस से गांव के लोग फिर से इन पत्तों से रोजगार पा संकेगे ओर यह तो आपको पत्ता होगा ओर यह बात जानकार आपके मुहं मे लार आऐगी कि कभी शादी मे इन पत्तों मे खाना कितना टेस्टी होता था यदि आपने खाया होगा तो आप इस पोस्ट को शेयर जरूर करेंगे ओर दुनिया को बताऐंगे कि भाई ये खोज आपकी नही हमारी है ।
देखिऐ कैसे जर्मनी मे चल यहा इन पत्तों का क्रेज और वो क्या कह रहे –
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