अपनी संस्कृति को संवारने में लगी उत्तराखंड की कुछ ऐसी बेटियां हैं जिनके काम से हमारी संस्कृति की चकाचौन्द दूर दूर तक दिखाई देती है। वो बेटियां संस्कृति को बचाने की लिए कला की उस मुहीम से जुडी हुई हैं जिसपे संस्कृति काफी हद तक टिकी होती है। संस्कृति कला मंच-
आज हम जिस कलाकार बेटी की बात कर रहे हैं, वो हैं उत्तराखंडी एल्बम में अपना दम दिखानी वाली अभिनेत्री दुर्गा सागर की, जी हैं आज जमाना आगे बढ़ रहा है, देश विदेश में हमारे प्रदेश की बेटियां प्रदेश का नाम रोशन कर रही हैं तो कुछ बेटियां हमारी संस्कृति और विरासत को संवार रही हैं दुर्गा सागर भी उन्ही में से एक हैं।
दुर्गा सागर का जन्म 6 मई 1992 में चमोली जिले के गडोली गांव में हुआ बचपन से ही कला के प्रति प्रेम ही था कि उन्होंने उत्तराखंडी लोकसंगीत में अभिनय करने शुरू किया और आज वो हर किसी के दिल में जगह बनाने में कामयाब रही हैं।
उनकी खूबसूरती के साथ उनके अभिनय की खूब चर्चे रहते हैं। हालाँकि उत्तराखंड में लोक कलाकारों को इतनी पहचान नहीं मिल पाती है, जितनी कि उन्हें मिलनी चाहिए, सायद वो हर उत्तराखंडी का दुर्भाग्य कहा जाएगा। क्योंकि आज भी हमारी भाषा ने जैसा मुकाम पाना था वो नहीं पाया है। फिल्मे बनना तो बहुत कम हो गयी हैं।
फिर भी वो अपने दम पर जितना भी करते हैं उसकी तारीफ करनी चाहिए। काफी नाटय मंचो पर अभिनय करते हुए उत्तराखंड की संस्कृति की उन्होंने हर जगह छाप छोड़ी है। नाक की नथुली उनको कुछ जादा जमती है हर कोई उन्हें नथुली में देखना पसंद करता है।
इस जमाने के साथ हर किसी को कदम से कदम मिलाकर चलना होता है। शादी के बाद भी उन्होंने अपनी एक्टिंग का सिलसिला खत्म नहीं किया। आज भी वो उत्तराखंड संस्कृति के लिए कार्य करने में जुटी हैं। घर में माता-पिता के अलावा एक बहिन है। वो अपने परिवार के साथ देहरादून में रहती हैं।
उनके फेवरिट गीतों में ‘मैं जांदू मेरी बसंती’ और ‘झम्पा बकरवाली’ हैं। इसके अलावा उन्होंने कई गीतों में शानदार अभी किया है, लखमा, माया कु बेरी समझ, रेशमा बोजी, छोरी रूपेणा, सयाली हे रुशना, छोरी सुमना, और भी बहुत सारे सुपर हिट गीत हैं। ')}