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Raibaar Uttarakhand > Blog > उत्तराखंड संस्कृति > जीवनशैली > गढ़वाल मे जब तक पल्यो भात ना सपौडा चैन नही आता
जीवनशैली

गढ़वाल मे जब तक पल्यो भात ना सपौडा चैन नही आता

January 30, 2017
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jhooli bhaat
jhooli bhaat

जनाब बात ऐसी है कि बहुत दिन हो गया ओर कडी चावल नही खाया। अपने गांव मै मां के हाथ का पल्यो भात खाया था जो कभी भुलाऐ नही भुलता। मेने भी आज अपने हाथों से बनाने की कोशिश की है । वही रैसपी है बस हाथ अलग है ओर पानी भी शायद मैं गढ़वाल मे बननी वाली कडी ना बना सकूं क्योंकि यहां पर दही की कडी बना रहा हू गांव मै तो मां झांस की बनाती थी वो घर के चावल बिगो दिया करती थी ओर बाद मे सिलबटे से पीसकर उसमे मिला देती थी जिससे उसमे गाडापन भी आता था ओर टेस्ट भी
इसका तडका भी अलग है सरसों का तैल ओर जख्या या सरसों का छौंक ही काफी होता था इसे टेस्टी बनाने के लिऐ ऐक पहाडी जडी बुटी का स्तेमाल किया जाता था जिसका नाम चौरू कहा जाता था आजकल ये कम ही मिलता है लैकिन इसके टे स्टको मैं आज भी महसूस कर सकता हूं । बस मैं तो पहाडी स्टाइल मे ही बनाऊंगा मैने भी बैसन की जगह चावल भीगा दिया है मैरे पास सिलबटा नही है लेकिन मै मिक्सर मै इसे पीस सकता हूं बस जब ये तैयार हो जाऐगी तो मैं इसे सपौडा सपौडी करके खाऊंगा। आप लोग भी पल्यो भात बहुत पसन्द करते होंगे
तो चाहुंगा कि आप लोगों को इसकी बनानी की विधि बता दूं .
सबसे पैहले चावल भिगा दो गांव मै हो तो घर के चावल भिगोंये।

सरसों का तेल डालकर सरसों ओर लाल मिर्च का छौंक मारे ओर सिलबटा मे नमक हल्दी मिर्च धनिया जीरा लहसुन मिलाकर पीसें ओर डाल दे अच्छे से पक जाऐ तो छांछ डाल दें ओर अच्छे से हिलाऐं चावल को पीस लें ओर मिला दें धीरे धीरे पकने दें
हाहा में तो सपौडी सपौडी खाने में ही मजे लेता हूं । ')}

Debanand pant January 30, 2017
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